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वृत्ति करते हैं। इसी तरह इस परित्याग को महत्व देते हुए सम्यग्धर्म की आराधना करते हैं। तभी वे संयत८ बनते हैं।
_आचारांग वृत्ति के विषय को समेटने के लिए साध्वी राजश्री ने जो कार्य किया है, उसके विषय में कुछ कह पाना सम्भव नहीं। उन्होंने तो आगम-परम्परा, आचारांग वृत्ति के मूल विषय का विवेचन, आचार-मीमांसा, ज्ञान-मीमांसा, दर्शन-मीमांसा आदि के साथ-साथ जो भाषा-शास्त्रीय अध्ययन दिया है, वह अत्यन्त सराहनीय है। यह वृत्ति का अनुसंधानात्मक रूप समीचीन है। इसमें विराटता है और वस्तु विषयपरक विवेचन भी है। वह अनुसंधानकर्ची साधुवाद एवं आशिष की पात्र है।
साध्वी चारित्रप्रभा
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