________________ ग्रन्थ परिचय प्रस्तुत शोध प्रबन्ध शीलांकाचार्य की आचाराङ्ग सूत्र की टीका का विवेचनात्मक एक अध्ययन है। साध्वी राजश्रीजी ने भगवान महावीर के समकालीन दार्शनिक परिवेश का परिचय देते हुए जैन दर्शन के आधारभूत तत्त्वों के परिप्रेक्ष्य में आचारांग वृत्ति का दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन दो अध्यायों में प्रस्तुत किया गया है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अध्ययन में वृत्तिकार द्वारा उस काल की संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की चर्चा को सम्मिलित किया गया है। वृत्ति में चर्चित ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि विषयों का पृथक् अध्ययन रोचक सूचना सामग्री लिए है। यह समस्त विवेचन सामाजिक परिस्थितियों एवं व्यवस्थाओं का विस्तृत लेखा-जोखा उपलब्ध कराता है। भाषात्मक अध्ययन में सम्पूर्ण विषय को नहीं समेटा गया है / .... Jain Education International For Personalvelser www.jaineliletary.me