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मालिश का उल्लेख है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिये स्निग्ध पदार्थों की अपेक्षा रुक्ष पदार्थों पर विशेष बल दिया गया है। कोद्र, ओटन, मंथू कुलमास आदि जैसे धान्य बलवर्धक हैं।१२८
चिकित्सा पद्धति का प्रयोग चिकित्सक किया करते थे ।१२९ चिकित्सक विविधं प्रकार की औषधियों के अतिरिक्त शरीर को स्वस्थ रखने के लिये विरेचन, संशोधन, संवर्धन, स्नान, संवाहन, आदि पर बल देते थे। रोगी के उपचार के लिये चिकित्सक विविध प्रकार के क्वाथ (काठे) रक्तवर्धन औषधियों, भस्मों एवं चूर्ण आदि का प्रयोग करते थे। कई एक रोगों के उपचार के लिये चिकित्सक शारीरिक लेप पर भी बल देते थे। लेप में भी चन्दन, हल्दी आदि के लेप प्रमुख थे।१३०
चिकित्सा पद्धति में चिकित्सक शुद्धता और अशुद्धता को ध्यान में रखकर वचन बल से एवं मंत्र आदि के सामर्थ्य से भी रोग निदान करता था।१३१ मनोरंजन के साधन
हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति में भी हर्ष युक्त शब्द, कर्ण प्रिय शब्द, कर्ण कटु शब्द, निन्दा, गाली आदि का प्रचलन था। व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिये जहाँ ज्ञान, दर्शन और चारित्र की श्रेष्ठता का गुणगान करता था; गुरु के प्रति श्रद्धावनत होता था; दीन-दुःखी जीवों के प्रति करुणा भाव एवं श्रमणों के प्रति स्थितिपरक शब्दों का प्रयोग करता था; वहीं लौकिक व्यवहार में अपनी-अपनी भंगिमाओं के अनुसार विविध प्रकार के वाद्यों, संगीत आदि के माध्यमों से मनोरंजन करता था।
वृत्तिकार ने मूलतः दो प्रकार की शब्द शक्तियों को अङ्कित किया है—१. द्रव्य शब्द और २. भाव शब्द। द्रव्य शब्द में मृदंग आदि के शब्दों को रखा है और भाव शब्द में अहिंसक विचारों को रखा है। अहिंसक भात्र कीर्ति युक्त होते थे। उसमें उप अतिशयों से युक्त भगवन् जिनेन्द के गुणों का गुणगान किया जाता था।१३२
__मनोरंजन के लिये कथानक (आख्यायिका कथा), नृत्य, गीत, नाटक आदि का प्रयोग किया जाता था ।१३२ कुछ युद्ध आदि भी होते थे, उनमें महीप युद्ध (भैंसे का युद्ध), वृषभ युद्ध (बैल का युद्ध), अश्व युद्ध (घोड़ों का युद्ध) और कपिंजल युद्ध आदि प्रसिद्ध थे।१३४
___ वाद्य यंत्रों में मृदंग, नंदी, जलरी, वीणा, विषंची, बधीशक्त, तूनक, ढोल, तुम्बवीणा, ढन्कुल, कंसताल, लतिका, द्योदिका, शंख, वेणु, बाँस (बाँसुरी), खरमूही, किरकिरी, तोहाडीको, पीरिपरिय, कौलियक आदि प्रसिद्ध थे ।१३५
मूलतः ये मनोरंजन ग्रामों, नगरों के तिराहों, चौपालों, चौराहों, चतुर्मुख स्थानों, अट्टालिकाओं, राजमार्गों, नगर द्वारों, आरामगारों, उद्यानों, वनों, उपवनों, देवालयों, सभाओं १९६
आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन
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