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एवं रसज्ञ भोजनों में श्रमण आसक्त नहीं होते थे। इस तरह उस समय में भोज व्यवस्था का उल्लेख हमारी संस्कृति और सभ्यता का आदर्श कहा जा सकता है। आवास
आवास को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-१. श्रमणावास और २. श्रावकावास। श्रमणावास
उपधान सूत्र के नवें अध्ययन में श्रमणों के आवासों का उल्लेख किया गया है। श्रमण मूलत: आवेषण, सभा गृह, प्याऊ, पण्णशाला, (दुकान) पलित-स्थान (लौहार, सुथार, सुनार आदि के कर्म स्थान (कारखाने) पलाल पुँज, आगन्तार (यात्रीगृह, धर्मशाला) आरामागार (आरामगृह, विश्रामगृह) ग्राम या नगर के एकान्त स्थान, श्मशान, शून्यागार, वृक्ष मूल आदि आवासों में रहते थे। आचारांग में आवास या वास शब्द का प्रयोग ही किया है। वृत्तिकार ने इसकी विस्तार से व्याख्या की है उन्होंने भी साधु के ठहरने योग्य स्थानों को “वास" कहा है। आवास के लिये शयन शब्द या वसति शब्द का प्रयोग भी किया है । १३ श्रावकावास
ग्राम, नगर, खेड़ा, कंमबड़ (करवट), भडम्ब, पाहण (पत्तन), द्रोण मुख, आगर, आश्रम, सन्निवेश, निगम, जनपद, राजधानी, देश आदि गृहस्थों के आवास आचारांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में आवासों की पृथक्-पृथक् पहचान का भी विवेचन किया है। जैसे–मंचमाल (प्रतीत) प्रासाद द्वितीय भूमिका-एक माले से अधिक हरमतल (भूमि गृह)१४ शान्ति कर्मगृह, ( जहाँ पर शान्ति कर्म किया जाता है ऐसा गृह) गीरिगृह (पर्वत के ऊपर स्थित गृह) कन्दर (गिरिगुफा) शैलोप प्रस्थापन (पाषाण मंडप)१५ इत्यादिक ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, पट्टन वेश आदि का विवेचन किया है । १६ गृह
गृह अर्थात् मकान कई प्रकार के होते थे, जिन्हें मठ,प्रासाद, हमंतल, आरामागार, अन्तागार कहते हैं। घर प्रायः बड़े एवं विशाल परिजनों से युक्त होते थे। गृहस्थों के घरों को मायापति कुल के नाम से जाना जाता था।११७ इससे यह विदित होता है कि उस समय घर बनाने की कला विकसित थी। इसलिये छोटे-बड़े घरों का उल्लेख आचारांग वृत्ति में किया गया है। मकान में वातायन (खिड़की १८), (आलोक स्थान), दरवाजे, एक के ऊपर एक मंजिले आदि भी मकानों के बनाये जाते थे। मकान जर्जर होने पर उन्हें ठीक करवाया जाता था या छोड़ दिया जाता था। ऐसे स्थान निर्जन स्थान या एकान्त स्थान की संज्ञा प्राप्त कर लेते थे। आगन्तार, पथिक-शाला, आराम गृह, एकान्त स्थान के लिये प्रचलित हैं। वृत्तिकार ने पाँच प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख किया है। जैसे-देवेन्द्र, राजा, गृहपति, सामारिक और साधर्मिक । अर्थात् आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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