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________________ आचारांग-वृत्ति का सांस्कृतिक अध्ययन आचारांग सूत्र की वृत्ति पर वृत्तिकार ने अनेक तरह से विश्लेषण प्रस्तुत किया है। आगम के मूल विषय को दृष्टि में रखते हुए वृत्तिकार शीलंक आचार्य ने श्रमण-श्रमणियों के आचार-विचार एवं विहार आदि की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की है। उसी के अन्तर्गत अनेक प्रकार की सांस्कृतिक सामग्री का विवेचन भी हुआ है। शीलंक आचार्य ने सांस्कृतिक विचारधारा को विकसित करने के लिये शब्द विश्लेषण के साथ जो विवेचन प्रस्तुत किया है उसमें तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती, राजा, राजपुत्र, जनपद, नगर, ग्राम आदि का विवेचन भी मिलता है। राज, राज्य, शासन-व्यवस्था आदि का विस्तृत विवेचन नहीं है, परन्तु कुछ राज्य एवं राजाओं का वर्णन है। इसमें भूगोल, खगोल, इतिहास, संगीत, नृत्य, चिकित्सा पद्धति, रोग और रोग के प्रकार का भी वर्णन है। सामाजिक-धार्मिक चित्रण के साथ इसमें प्राणि-विज्ञान, वनस्पति-विज्ञान आदि कई प्रकार के विषयों का विवेचन भी हुआ है। भौगोलिक सामग्री कला और विज्ञान, वाणिज्य-व्यापार, रीति-रिवाज, शिक्षातत्त्व, नीति आदि के संकेत भी इसमें हैं। यह अवश्य विचारणीय है कि सम्पूर्ण ग्रन्थ श्रमण चर्या पर आधारित होते हुए भी इसमें सामाजिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक आदि विश्लेषण को भी इसमें देखा जा सकता है। इसी आधार पर कुछ महत्त्वपूर्ण चिंतन यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो इसकी सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट कर सकेंगे। ऐतिहासिक पक्ष आचारांग वृत्तिकार ने वृत्ति के प्रारम्भ में “ॐ नमः सर्वज्ञाय” इस विवेचन से सभी सर्वज्ञों को नमन किया है। अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सभी साधुओं को नमन किया गया है तथा श्री सुधर्मा स्वामी केवली, भद्रबाहु स्वामी जैसे ऐतिहासिक पुरुषों की जानकारी इससे मिलती है। इसी क्रम में ज्ञात कुल के प्रमुख नायक वीर प्रभु का भी स्मरण किया है। तीर्थ, तीर्थंकर तीर्थकृत, गणि, चतुर्दश पूर्वधारी आचार्य तीर्थ प्रवर्तक, गणधर, केवली, श्रुत केवली आदि के नामों का उल्लेख है। सूरेश्वर चक्रवर्ती, माण्डलिक, ऋषभ, पार्श्वनाथ, केशी गौतम, अरिष्ठ-नेमी, वीर, वर्धमान, महावीर आदि तीर्थंकरों आदि के नाम एवं नागार्जुन जैसे विशिष्ट १८० आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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