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आचारांग-वृत्ति में प्रतिपादित जैन धर्म और दर्शन
धर्म तत्त्व वस्तुस्वरूप के भेद-विज्ञान को प्रस्तुत करता है, उचित-अनुचित पक्ष को प्रतिपादित करता है एवं नीति तत्त्वों का उपदेश देता है। धर्म दर्शक पक्ष उस चिन्तन को नई दिशा प्रदान करता है जिससे एक ही पक्ष के नाना स्वरूप प्रतिपादित किय जाते हैं। धर्म और दर्शन मानवीयता का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता
जैन परम्परा की ऐतिहासिकता
भारतीय संस्कृति के दो ऐतिहासिक पक्ष हैं-प्रथम श्रमण संस्कृति पक्ष और . द्वितीय वैदिक संस्कृति । श्रमण संस्कृति में जैन और बौद्ध धर्म की ऐतिहासिकता की गणना की जाती है। इस परम्परा की ऐतिहासिकता अतिप्राचीन है। कुलकर नाम से प्रसिद्ध यह परम्परा कल्पयुग की यशोगाथा का गुणगान करती है। इसके आद्य प्रवर्तक अन्तिम कुलकर नाभिराय के पुत्र आदिपुरुष ऋषभदेव माने गये हैं।
इतिहासवेत्ताओं ने गंभीर चिन्तन करके आदिपुरुष से लेकर अन्तिम तीर्थंकर महावीर और उसके पश्चात् की परम्परा का किसी न किसी रूप में उल्लेख किया है। कालक्रम से कई परिवर्तन हुए, अनेक युग भी प्रारम्भ हुए। एक ऐसा युग भी प्रारम्भ हुआ जिसे कल्पयुग कहा गया । युग की व्यवस्था को संक्षिप्त में निम्न प्रकार से कर सकते हैं१. कुलकर परम्परा
१४ कुलकर २. तीर्थंकर युग
२४ तीर्थंकर ३. गणधर युग
११ गणधर ४. आचार्य परम्परा भद्रबाहु आदि
महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम थे। वे महान प्रतिभासम्पन्न थे। जो स्थान उपनिषद् में उद्धालक के समक्ष श्वेतकेतु का है, गीता में कृष्ण के समक्ष अर्जुन का है, बुद्ध के समक्ष आनन्द का है, वही, स्थान महावीर के समक्ष इन्द्रभूति गौतम १५६
आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन
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