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________________ २६ सामायिके कृते श्रावकेण विद्धो मृगः अरण्ये । स च मृगः उद्धतः न च स सामायिकं स्फोटितवान् ॥३१॥ सामाइए - सामायिके । कदे - कृते । सावएण - श्रावकेन । विद्धो व्यथितः केनापि । मओ - मृगो हरिणपोतः अरण्येऽटव्यां । सो य मओ - सोऽपि मृगः । उद्धादो-मृतः प्राणैर्विपन्नः । ण य सो- न चासौ । सामाइयं - सामायिकात् । फिडिओ-निर्गतः परिहीणः । केनचिच्छ्रावकेणाटव्यां सामायिके कृते शल्येन विद्धो मृगः पादान्तरे आगत्य व्यवस्थितो वेदनार्त्तः सन् स्तोकबारं स्थित्वा मृतो मृगो नासौ श्रावकः सामायिकात् संयमान्निर्गतः संसारदोषदर्शनादिति, तेन कारणेन सामायिकं क्रियत इति सम्बन्धः ||३१|| आवश्यक निर्युक्तिः केन सामायिकमुद्दिष्टमित्याशंकायामाह - बावीसं तित्थयरा सामायियसंजमं उवदिसंति । छेदोवट्ठावणियं पुण भयवं उसहो य वीरो य ।। ३२ ।। द्वाविंशतितीर्थंकरा : सामायिकसंयमं उपदिशंति । छेदोपस्थापनं पुनः भगवान् ऋषभश्च वीरंश्च ॥३२॥ द्वाविंशतितीर्थंकरा अजितादिपार्श्वनाथपर्यन्ताः सामायिकसंयममुपदिशन्ति प्रतिपादयन्ति । छेदोपस्थानं पुनः संयमं वृषभो वीरश्च प्रतिपादयतः ॥३२॥ आचारवृत्ति - वन में कोई श्रावक सामायिक कर रहा था, उस समय किसी व्याध (शिकारी) के द्वारा वाणों से विद्ध होकर व्यथित होता हुआ कोई हिरण वहाँ उस श्रावक के पैरों के बीच में आकर गिर पड़ा और वेदना से पीड़ित हुआ, वह तड़पता हुआ बार-बार उसके पास स्थित रहकर मर भी गया फिर भी वह श्रावक अपने सामायिक संयम से पृथक् नहीं हुआ अर्थात् सामायिक का नियम भंग नहीं किया, क्योंकि वह उस समय संसार के दोषों की स्थिति का विचार कर रहा था । इसलिए बहुत बार बहुत प्रकार से सामायिक करना चाहिए, यहाँ ऐसा सम्बन्ध जोड़ लेना चाहिए ॥३१॥ गाथार्थ - बाईस तीर्थंकर सामायिक संयम का उपदेश देते हैं, किन्तु भगवान् वृषभदेव और महावीर छेदोपस्थापना संयम का उपदेश देते हैं ॥ ३२॥ आचारवृत्ति - द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर २३ वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ पर्यन्त - बाईस तीर्थंकर सामायिक संयम का उपदेश देते । किन्तु छेदोपस्थापना संयम का वर्णन प्रथम तीर्थंकर वृषभदेव और अन्तिम (२४वें) तीर्थंकर वर्धमान स्वामी ने ही किया है ||३२|| ज्ञानपीठ सं०-छेदुवठावणियं । १. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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