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________________ प्राक्कथन प्रस्तुत "श्रमण आवश्यक - - निर्युक्ति" को जिन फाउण्डेशन ग्रन्थमाला के प्रथम पुष्प के रूप में प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। यह एक महत्वपूर्ण जैन आगम शास्त्र है, जो शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध है। यह आचार्य वट्टकेर प्रणीत दिगम्बर जैन मुनियों के आचार-विचार विषयक एक अति प्रसिद्ध, प्रामाणिक और प्राचीन आगम शास्त्र "मूलाचार" का ही "षडावश्यक" नामक सप्तम अधिकार (अध्याय) है, जिसे स्वतंत्र आगम शास्त्र के रूप में सोद्देश्य प्रकाशित किया जा रहा है। मूलाचार का रचनाकाल दूसरी शती के आसपास का है। इतना प्राचीन होने पर भी तीर्थंकर महावीर की परम्परा के श्रमणों और उनके संघों के आचार का जीवन्त स्वरूप आज भी इसी मूलाचार के आधार पर आधृत होने से यह आगम शास्त्र आज भी जीवन्त है। वस्तुतः यह शास्त्र इस परम्परा के जैन मुनियों का "संविधान" है। प्राचीन जैन मूल - आगम - साहित्य पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि विविध रूपों में व्याख्या साहित्य लिखा गया । "निर्युक्ति" भी इन्हीं व्याख्याओं की एक बड़ी ही लोकप्रिय विधा है। श्वेताम्बर परम्परा के अर्धमागधी प्राकृत आगम साहित्य में "निर्युक्ति" साहित्य आज भी समृद्ध रूप में विद्यमान है, किन्तु दिगम्बर परम्परा के शौरसेनी प्राकृत साहित्य में अन्य आगमों और उनके व्याख्या साहित्य की तरह, व्याख्याओं की यह निर्युक्ति विधा भी दुर्लभप्रायः है, मात्र कुछ बड़े शौरसेनी आगमशास्त्रों के अन्तर्गत ही निर्युक्ति, चूर्णि आदि व्याख्याओं के किंचित् रूप ही उपलब्ध होते हैं। अतः मूलाचार में समाहित इस आवश्यक निर्युक्ति को शौरसेनी के स्वतंत्र नियुक्ति साहित्य को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से इसे इस रूप में प्रकट किया गया है । यद्यपि इस सबका विस्तृत विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ की सम्पादकीय भूमिका में किया गया है, अतः इस विषय में अधिक जानकारी हेतु प्रस्तुत ग्रन्थ की सम्पादकीय भूमिका पढ़ना आवश्यक है । इसके अध्ययन से यह स्पष्ट हैं कि प्राचीनकाल में यह आवश्यक निर्युक्ति भी विशाल स्वतंत्र आगम शास्त्र के रूप में विद्यमान रही है, जिसका संक्षेप करके आचार्य वट्टकेर ने उसे अपने मूलाचार में सम्मिलित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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