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श्रीमद्-वट्टकेराचार्य-प्रणीत-मूलाचारान्तर्गते
आवश्यक-नियुक्तिः श्रीमदाचार्यवसुनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तिविरचितया आचारवृत्त्या सहिता
मङ्गलाचरणम् अथ मूलाचारे (प्रतिपादितमष्टाविंशतिमूलगुणानामन्तर्गते आवश्यकनियुक्तिनाम) सप्तम-षडावश्यकाधिकारं प्रपञ्चेन षडावश्यकक्रियं विवृण्वन् प्रथमतरं तावनमस्कारमाह
काऊण णमोक्कारं अरहंताणं तहेव सिद्धाणं । आइरियउवज्झाए लोगम्मि य सव्वसाहूणं ।।१।।
कृत्वा नमस्कारं अर्हतां तथैव सिद्धानाम्।
आचार्योपाध्यायानां लोके च सर्वसाधूनाम् ॥१॥ कृत्वा नमस्कार; केषामर्हतां तथैव सिद्धानाम् आचार्योपाध्यायानां च लोके च सर्वसाधूनाम्। लोकशब्दः प्रत्येकमभिसम्बध्यते । कारशब्दो येन तेन षष्ठी संजाताऽन्यथा पुनश्चतुर्थी भवति । अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसाधुभ्यो लोकेऽस्मिन्नमस्कृत्वा आवश्यकनियुक्तिं वक्ष्ये इति सम्बन्धः सापेक्षत्वात् क्त्वान्तप्रयोगस्येति ॥१॥
गाथार्थ-(जैनधर्म के पवित्र णमोकार महामंत्र में प्रसिद्ध पंच-परमेष्ठी अर्थात्-अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और लोक के सर्व-साधुओं (इन सभी) को नमस्कार करके, मैं (आचार्य वट्टकेर) आवश्यक नियुक्ति कहूँगा ।
आचारवृत्ति-नमस्कार करके, किनको ? अर्हन्तों को, उसी प्रकार सिद्धों को, आचार्यों और उपाध्यायों को एवं लोक में सर्व-साधुओं को । यहाँ लोक शब्द का इन पाँचों में प्रत्येक के साथ सम्बन्ध कर लेना चाहिए । यहाँ इस गाथा में 'अरहंताणं' आदि पदों में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग इसलिए किया गया है, क्योंकि 'नमः' शब्द के साथ 'कार' शब्द का प्रयोग किया गया है । यदि यहाँ मात्र "नमः" शब्द होता तो नियमानुसार चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया जाता । इस तरह इस लोक में जो अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु हैं, उन सभी को नमस्कार करके मैं आवश्यक नियुक्ति को (कहूँगा) प्रस्तुत करूँगा-इस तरह सम्बन्ध करना चाहिए । वस्तुत: “क्त्वा" प्रत्यय युक्त शब्दों का प्रयोग सापेक्ष होता है अर्थात् वह आगे क्रिया की अपेक्षा रखता है ॥१॥
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