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आवश्यक नियुक्तिः
सर्व- उत्तरगुण प्रत्याख्यान के दस भेद'
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(१) अनागत- भविष्यकाल विषयक उपवास आदि पहले कर लेना । यथा - चतुर्दशी को किया जाने वाला उपवास त्रयोदशी को करना ।
(२) अतिक्रान्त- अतीत (भूत) काल विषयक उपवास आदि करना । जैसे चतुर्दशी आदि को कारणवश उपवास न कर पाये तो उसे आगे प्रतिपदा आदि में करना ।
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(३) कोटिसहित — अर्थात् संकल्प - सहित शक्ति की अपेक्षा उपवासादि करने का संकल्प करना । जैसे—कल स्वाध्याय के बाद यदि शक्ति होगी तो उपवासादि करूँगा, अन्यथा नहीं ।
(४) निखंडित - पाक्षिक, मासिक आदि में अवश्यकरणीय उपवासादि का
करना ।
(५) साकार — सभेद अर्थात् प्रत्याख्यान करते समय आकार विशेष जैसे सर्वतोभद्र, कनकावल्यादि व्रतों के उपवासों को विधि, नक्षत्रादि के भेद पूर्वक
करना ।
(६) अनाकार - बिना आकार अर्थात् नक्षत्रादि का भेद या विचार किये बिना स्वेच्छया उपवासादि करना ।
(७) परिणामगत — दो, तीन, पन्द्रह आदि दिन के काल प्रमाण सहित उपवासादि करना ।
(८) अपरिशेष— यावज्जीवन चार प्रकार के आहार आदि का परित्याग
करना ।
(९) अध्वानगत – (मार्ग विषयक ) - जंगल, नदी, देश आदि का रास्ता पार करने तक आहारादि का त्याग करना ।
(१०) सहेतुक — उपसर्गादि के कारण उपवासादि करना । अर्धमागधी- आवश्यक नियुक्ति में वर्णित प्रत्याख्यान के भेद - प्रभेद
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पहले मूलाचारकार प्रत्याख्यान के मूलगुण और उत्तरगुण इन दो भेदों तथा इनके उपर्युक्त भेदों का संकेत मात्र करके अन्त में कुल दस भेदों की गणना है । किन्तु वेताम्बर परम्परा की अर्धमागधी आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका में इन भेदों से कुछ शब्दभेद तथा अर्थभेद के साथ स्पष्टीकरण पूर्वक इनका विस्तृत विवेचन इस प्रकार किया गया है
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मूलाचार ७/१४०-१४१, आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका १५५९- १५५६ तुलना करो - स्थानांग १०/१०१, भगवती ७/२ ( पृ० ९२६,९९९)
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