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________________ आवश्यकनियुक्तिः १६५ (२) कृतिकर्म किसका करे ?-आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणधर आदि की वन्दना (कृतिकर्म) अपने कर्मों की निर्जरा के लिए करना चाहिए ।' किन्तु संयत मुनि को असंयत माता-पिता, गुरु, राजा, देशविरत श्रावक तथा पार्श्वस्थ, कुशील, संसक्त, अपसंज्ञ, मृगचरित्र और अन्य तीर्थ के साधुओं की वन्दना नहीं करना चाहिए । क्योंकि ये मुनि दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा धर्म-तीर्थ आदि में श्रद्धा और हर्ष रहित होते हैं । ऐसे साधु तो रत्नत्रय, तप और विनय से सर्वथा परे रहकर गुणधर (मूलगुण-उत्तरगुण के धारक) मुनियों के छिद्रान्वेषी होते हैं । (३) कृतिकर्म किस विधि से करे ?–पर्यंकासन तथा कायोत्सर्ग-इन दो आसनों में से किसी एक आसन पूर्वक कृतिकर्म करना चाहिए । क्योंकि ये दो आसन सुखासन कहलाते हैं । इनमें भी पर्यंकासन अधिक सुखकर है, बाकी के सब आसन विषम अर्थात् व्याकुलता उत्पन्न करने वाले हैं। जो महाशक्तिशाली हैं उन्हें सभी आसनों का प्रयोग करके मन, वचन और काय की विशुद्धिपूर्वक मदरहित होकर कर्मों का उल्लंघन न करके कृतिकर्म करना चाहिए । कृतिकर्म के लिये योग्य स्थान भी अपेक्षित है अत: विनय की वृद्धि हेतु साधुओं को तृणमय, शिलामय या काष्ठमय आसन पर बैठना चाहिए जिसमें क्षुद्र (सूक्ष्म) जीव न हों, या उस आसन से चरंचर की आवाज न आती हो, आसन को छिद्र, कील या काँटे रहित, सुखकर तथा निश्चल होना चाहिए । (४) कृतिकर्म किस अवस्था में करे–जो आचार्य-मुनि पर्यंकासन पूर्वक आसन पर बैठा हो, ध्यान आदि कार्य में उस समय उपयुक्त न हो, ऐसे शान्तचित्त मुनि को-हे प्रभो ? मैं वन्दना करता हूँ-इस तरह से मेधावी मुनि को सम्बोधनपूर्वक तथा प्रार्थनापूर्वक कृतिकर्म करना चाहिए । १. मूलाचार ७/९४ । २. वही ७/९५-९७, अनगार धर्मामृत ७/४२ । ३. दुविहठाण पुणरुक्तं-मूलाचार ७/१०५ । ४. महापुराण २१/७१-७२, कार्तिकेयानुप्रेक्षा ३५५, अनगार धर्मामृत ८/८४ । महापुराण २१/७३ । ६. मूलाचार ७/१०५ । अनगार धर्मामृत ८/८२ । ८. ' आसणे आसणत्थं च उवसंतं च उवट्ठिदं । अणुविण्णय मेधावी किदियम्मं पउंजदे ।। मूलाचार ७/१०१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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