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________________ आवश्यकनियुक्तिः १२३ कायोत्सर्गस्य कारणमाहएगपदमस्सिदस्सवि जो अदिचारो तु रागदोसेहिं । गुत्तीहिं वदिकमो वा चदुहिं कसाएहिं वग्वदेहिं ।।१५२।। एकपदमाश्रितस्यापि यः अतिचारस्तु रागद्वेषाभ्यां । गुप्तीनां व्यतिक्रमो वा चतुर्भिः कषायैः वा व्रतेषु ॥१५२॥ एकपदमाश्रितस्यैकपदेन स्थितस्य योऽतीचारो भवति रागद्वेषाभ्यां तथा गुप्तीनां यो व्यतिक्रमः कषायैश्चतुर्भिः स्यात् व्रतविषये वा यो व्यतिक्रमः स्यात् ॥१५२॥ तथाछज्जीवणिकाएहिं भयमयठाणेहिं बंभधम्महि । काउस्सग्गं ठामिय तं कम्मणिघादणट्ठाए ।।१५३।। षड्जीवनिकायैः भयमदस्थानैः ब्रह्मधर्मे । कायोत्सर्ग अधितिष्ठामि तत्कर्मनिघातनाथ ॥१५३॥ षट्जीवनिकायैः पृथिव्यादिकायविराधनद्वारेण यो व्यतिक्रमस्तथा भयमदस्थानैः सप्तभयाष्टमदद्वारेण' यो व्यतिक्रमस्तथा ब्रह्मचर्यविषये यो व्यतिक्रमस्तेनाऽऽगतं यत्कर्मैकपदाद्याश्रितस्य गुप्त्यादिव्यतिक्रमेण च यत्कर्म तस्य कर्मणो कायोत्सर्ग का कारण कहते हैं गाथार्थ-एक पद का आश्रय लेने वाले के जो अतिचार हुआ है, रागद्वेष इन दो से तीन गुप्तियों में अथवा चार कषायों द्वारा वा पाँच व्रतों में जो व्यतिक्रम हुआ है. (॥१५२॥) छह जीव निकायों से, सात भयों से, आठ मद स्थानों से, नव ब्रह्मचर्य गुप्ति में और दशधर्मों में जो व्यतिक्रम हुआ है, इन सभी कर्मों का घात करने के लिए मैं कायोत्सर्ग का अनुष्ठान करता हूँ ॥१५३॥ ____ आचारवृत्ति-एक पैर से खड़े हुए जीव के जो अतिचार होता है, राग और द्वेष से जो व्यतिक्रम हुआ है, तीन गुप्तियों (मन, वचन, काय) का जो व्यतिक्रम हुआ है, चार कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) के द्वारा पाँच व्रतों (अहिंसा, अस्तेय, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य) के पालने में जो व्यतिक्रम हुआ है (॥१५२॥) षट्काय (पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति, अग्नि और त्रस-इन) १. क गुत्तीवदिक्कमो। ३. . क. वदएहिं । ५. ग. मदस्थानद्वारेण । २. ४. अ. ब. वदिक्कमो । क ०भकम्प० । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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