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आवश्यकनियुक्तिः
खाद्यं तथा सर्वोऽप्याहारः स्वाद्यमिति भणितं एवं चतुर्विधस्याप्याहारस्य द्रव्यार्थिकनयापेक्षयैक्यं आहारत्वेनाभेदादिति ॥१४४॥
पर्यायार्थिकनयापेक्षया पुनश्चतुर्विधस्तथैव प्राहअसणं पाणं तह खादियं चउत्थं च सादियं भणियं । एवं परूविदं दु सहिदु जे सही होदि ।।१४५।।
अशनं पानं तथा खाद्यं चतुर्थं च स्वाद्यं भणितं ।
एवं प्ररूपितं तु श्रद्धाय सुखी भवति ॥१४५॥ एवमशनपानखाद्यस्वाद्यभेदेनाहारं चतुर्विधं प्ररूपितं श्रद्धाय सुखी भवतीति फलं व्याख्यातं भवतीति ॥१४५।।
प्रत्याख्याननियुक्तिं व्याख्याय कायोत्सर्गनियुक्तिस्वरूपं प्रतिपादयन्नाहपच्चक्खाणणिजुत्ती एसा कहिया मए समासेण । काओसग्गणिजुत्ती एतो उड्ढे पवक्खामि ।।१४६।।
प्रत्याख्याननियुक्तिः एषा कथिता मया समासेन । कायोत्सर्गनियुक्तिं इत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि ॥१४६॥
आहार द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से एकरूप हैं क्योंकि आहारत्व की अपेक्षा से सभी में अभेद है ॥१४४॥
पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से पुनः आहार चार भेदरूप है
गाथार्थ-अशन, पान, खाद्य तथा चौथा स्वाद्य कहा गया है । इन कहे हुए उपदेश का श्रद्धान करके जीव सुखी हो जाता है ॥१४५।।
आचारवृत्ति-इन अशन आदि चार भेद रूप कहे गए आहार का श्रद्धान करके जीव सुखी हो जाता है यह इसका फल बताया गया है । अर्थात् उत्तमार्थी इन सब का त्यागकर सुखी होता है—यह इसका फल है ॥१४५।।
प्रत्याख्यान नियुक्ति का व्याख्यान करके अब कायोत्सर्ग नियुक्ति का स्वरूप बताते हैं
गाथार्थ-मैंने संक्षेप से यह प्रत्याख्यान नियुक्ति कही है । इसके बाद कायोत्सर्ग नियुक्ति कहूँगा ॥१४६॥
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