________________
३६
परिणामि जीवो मूर्तं सप्रदेशं एकक्षेत्रं क्रियावत् च । नित्यः कारणं कर्ता सर्वगत इतरस्मिन् अप्रवेशः ॥४४॥ परिणामोऽन्यथाभावो विद्यते येषां ते परिणामिनः । के ते जीवपुद्गलाः शेषाणि धर्माधर्मकालाकाशान्यपरिणामीनि कुतो द्रव्यार्थिकनयापेक्षया व्यञ्जनपर्यायं चाश्रित्यैतदुक्तं भवति । पर्यायार्थिकनयापेक्षयान्वर्थपर्यायमाश्रित्य सर्वेऽपि परिणामापरिणामात्मका यत इति । जीवो जीवद्रव्यं चेतनालक्षणो यतः । अजीवाः पुनः सर्वे पुद्गलादयो ज्ञातृत्वदृष्टुत्वाद्यभावादिति । मूर्तं पुद्गलद्रव्यं रूपादिमत्वात् । शेषाणि जीवधर्माधर्मकालाकाशान्यमूर्तानि रूपादिविरहितत्वात् । सप्रदेशानि सांशानि जीवधर्माधर्मपुद्गलाकाशानि प्रदेशबन्धदर्शनात् । अप्रदेशाः कालाणवः परमाणुश्च प्रचयाभावाद् बन्धाभावाच्च । धर्माधर्माकाशान्येकरूपाणि सर्वदा प्रदेशविघाताभावात् । शेषाः संसारिजीवपुद्गलकाला अनेकरूपाः प्रदेशानां भेददर्शनात् ।
:
आचारवृत्ति - परिणाम अर्थात् अन्य प्रकार से होना जिनमें पाया जाये वे द्रव्य परिणामी कहलाते हैं । वे जीव और पुद्गल हैं। शेष धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये चार द्रव्य अपरिणामी हैं । द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से व्यंजनपर्याय का आश्रय लेकर यह कथन किया गया है । तथा पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से अन्वर्थपर्याय का आश्रय लेकर सभी द्रव्य परिणाम- अपरिणात्मक हैं। अर्थात् सभी द्रव्य कथंचित् परिणामी हैं, कथंचित् अपरिणामी हैं । जीव द्रव्य चेतना लक्षणवाला है, बाकी पुद्गल आदि सभी अजीव द्रव्य हैं, क्योंकि इनमें ज्ञातृत्व, दृष्टृत्व आदि का अभाव है। पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है, क्योंकि वह रूपादिमान्
है
I
१.
आवश्यक नियुक्तिः
शेष जीव, धर्म, अधर्म, काल और आकाश - ये पाँच द्रव्य अमूर्तिक हैं, क्योंकि ये रूपादि से रहित हैं। जीव, धर्म, अधर्म, पुद्गल और आकाश सप्रदेशी हैं अर्थात् ये अंश सहित हैं, क्योंकि इनमें प्रदेश - बंध देखा जाता है । कालाणु और परमाणु अप्रदेशी हैं क्योंकि इनमें प्रचय का अभाव है और बन्ध का भी अभाव है । धर्म, अधर्म और आकाश ये एक रूप हैं अर्थात् अखण्ड हैं, क्योंकि हमेशा इनके प्रदेश के विघात का अभाव है । शेष संसारी जीव, पुद्गल और काल—ये अनेक रूप हैं, चूँकि इनके प्रदेशों में भेद देखा जाता है । अर्थात् ये अनेक हैं इनके प्रदेश पृथक्-पृथक् हैं ।
क ०नि सप्र० ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org