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षड्द्रव्यों में जीव को अस्तिकाय कहा है। अस्तिकाय के स्वरूप के संबन्ध में जब गौतम स्वामी ने यह पूछा कि अस्तिकाय का स्वरूप क्या है? तब प्रभु महावीर ने कहा- जैसे चक्र का, छत्र का, चर्मरत्न का, दंड का, दुष्यपट्ट का, आयुध का, मोदक का खंड या टुकड़ा क्रमशः चक्र, छत्र, रत्न, दंड, दुष्यपट्ट या आयुध, मोदकनहीं कहलासकता, वैसे ही अस्तिकाय के एक प्रदेशको अस्तिकाय नहीं कहते, परन्तु सम्पूर्ण तत्त्व को ही अस्तिकाय कहते हैं। मिट्टी के अभाव में जिस प्रकार घट का निर्माण असंभव है, वैसे ही आत्मा के अभाव में सृष्टि का व्यापार भी असंभव है।
आत्मा के अस्तित्व की सिद्धिः
जिस प्रकार हमें घट, पट आदि पुद्गल द्रव्य की पर्यायों के दर्शन होते हैं, वैसे हमें आत्मा के दर्शन नहीं होते। इसकी प्रतीति हमें कारण व्यापार द्वारा होती है। सारथी जिस प्रकार से रथादि का संचालन करता है, आत्मा भी उसी प्रकार से शरीर का नियन्त्रण करती है। आत्मा ज्यों ही शरीर का त्याग कर देती है त्यों ही सुन्दर, स्वस्थ, प्रिय शरीर को आग के सुपुर्द कर दिया जाता है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि शरीर से भिन्न कोई तत्त्व या सत्ता अवश्य होनी चाहिए।
आत्मा इन्द्रियों से भिन्न है, क्योंकि इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी इन्द्रियों द्वारा ज्ञान वस्तुओं की स्मृति विद्यमान रहती है। ___ आत्मा इन्द्रियों से भिन्न है, क्योंकि कई बार इन्द्रियों का व्यापार होने पर भी पदार्थों की उपलब्धि नहीं होती। आँख, कान सक्षम हैं, फिर भी पदार्थों का ग्रहण नहीं होना यही प्रतीति कराता है कि इनके अतिरिक्त कुछ और भी है और वही आत्मा है।० - आत्मा इन्द्रियभिन्न नहीं होती तो एक इन्द्रियविकार दूसरी इन्द्रिय को प्रभावित नहीं करता। इमली को आँख से देखते ही तत्काल जिह्वा प्रभावित हो जाती है, उसमे अमल रसास्वाद स्मृति जन्य लारकास्राव होने लगता है। इससे ७. भगवती: २:१०.१ ८. भगवती २.१०.४, (३) ९. षड्दर्शन समु. टी. ४९.१५७ १०. षड्दर्शन समु. टी. ४९.१५८
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