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प्रकाशकीय
वीतराग - वाणी मोक्ष का विज्ञान है। वीतराग परमात्मा ने केवलज्ञान के आलोक में जगत् के यथार्थ स्वरूप का दर्शन कर भव्य आत्माओं के कल्याण के लिए तत्त्वों का निरूपण किया ।
परमात्मा की वाणी पूर्णतः वैज्ञानिक है । यदि कोई तत्त्व विज्ञानवेत्ताओं की पकड़ में नहीं आता हैं तो यह उनके ज्ञान का अधूरापन है, इस अधूरे ज्ञान के आधार पर परमात्मा की वाणी में शंका करना आधारहीन है ।
जैनदर्शन यथार्थवादी दर्शन है। जैनदर्शन के अनुसार जगत् में दो तत्त्व हैं- जीव और अजीव । ये दो तत्त्व छह द्रव्यों में वर्गीकृत किये जाते है। छह द्रव्यों के यथार्थ स्वरूप को समझ लेने से जगत् के स्वरूप का तत्त्व समझ में आ जाता है । जगत षड्द्रव्यमय है; इसके अलावा और कुछ भी नहीं है । इसे ही आधार बनाकर परम पूजनीया परम विदुषी महाप्रज्ञा बहिन म. साध्वी डॉ. विद्युत्प्रभाश्री जी महाराज ने प्रस्तुत ग्रन्थ में षड् द्रव्यों वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ आदरणीय बनेगा, ज्ञान- जिज्ञासा का आधार बनेगा । इन्हीं आशाओं के साथ ग्रन्थ आपको कर-कमलों में प्रस्तुत है ।
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