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अंतिम अवयव को अविभाज्य और निरवयव मानना होगा, और ऐसा अतीन्द्रिय नित्य अविभाज्य भौतिक द्रव्य परमाणु है । ८४
परमाणु चार प्रकार के हैं- पार्थिव, जलीय, तैजस आर वायवीय । आकाश एक और नित्य है ।
प्रशस्तपाद ने अपने भाष्य में इन परमाणुओं से जगदुत्पत्ति का सुंदर विवेचन किया है।८५ अणु परिणाम विशिष्ट परमाणुओं से द्वणुक की उत्पत्ति होती है । द्व्यणुक कार्य होने से अनित्य है यद्यपि वह भी अणुपरमाणुक होता है। तीन णकों से जिस त्रसरेणु की उत्पत्ति होती है, वह महत्परिमाणवाला होता है । यही इन्द्रियगोचर होता है । परमाणु की व्याख्या इस प्रकार उपलब्ध होती है - छत के छेद से सूर्य की किरणों में जो छोटे कण नजर आते हैं, वे त्रसरेणु हैं और उस त्रसरेणु का छठा भाग परमाणु है । ८६
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परमाणु शान्त और निस्पन्द रहते हैं फिर उनमें स्पन्द कैसे होता है ? वैशेषिक इसका कारण धर्माधर्मरूप अदृष्ट को बताते हैं । जैसे सुई की अयस्कांतमणि में गति", वृक्षों में रस का नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना " होता है, वैसे ही मन तथा परमाणुओं की पहली क्रिया अदृष्ट की सहकारिता से ईश्वर की इच्छा से परमाणुओं स्पंदन और फिर उससे सृष्टि क्रिया मानी गयी है । ८९
चार्वाक में द्रव्य एवं सृष्टि:
भारतीय दर्शन में चार्वाक दर्शन का उल्लेख नास्तिक दर्शन में होता है । वह इस सृष्टि की रचना को किसी व्यक्ति विशेष की उपलब्धि न मानकर इसे पृथ्वी, जल, तेज और वायु के ही तत्त्वचतुष्टय के द्वारा उत्पन्न बताता है । जिस प्रकार ८४. न्यायभाष्य ४.२.१७ - २५.७; प्रशस्तपादभाष्य, पृ. १९-२२
८५. प्रशस्तपादभाष्य, पृ. १९-२२
८६. जालान्तरगते भानौ, यत् सूक्ष्मं दृश्यते रजः । तस्य षष्ठतमो भाग: परमाणु सः उच्यते । - आप्तमीमांसा, पृष्ठ २० से उद्धृत
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८७. मणिगमनसूच्यभिसर्पणमित्यदृष्टकारणम् । - वैशेषिकसूत्र, ५.१.१५
८८. वृक्षाभिसर्पणमित्यदृष्टकारितम् । - वैशेषिकसूत्र, ५.२.७
८९. प्रशस्तपादभाष्य, पृ. २०
९०. पृथ्वी जलं तथा... चतुष्टम् । - षडदर्शन. ४३; “शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञेभ्य... ।” - प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. ११५
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