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________________ परिभाषा करते हुए सांख्य कहता है कि कारण वह सत्ता है जिसके अंदर कार्य अव्यक्त रूप से विद्यमान रहता है। इसके लिए वह कतिपय उक्तियाँ भी प्रस्तुत करता है। ६९ अभावात्मक पदार्थ किसी भी क्रिया का कारण नहीं हो सकता; असत् को सत् नहीं बनाया जा सकता । नीले को हजारों कलाकार भी पीला नहीं कर सकते। सांख्य इस सृष्टि को किसी बुद्धिमान् की रचना नहीं मानता, अपितु वह स्पष्ट कहता है कि प्रकृति का कार्य-कलाप किसी सचेतन चिंतन का परिणाम नहीं है। - बुद्धि रहित प्रकृति के बारे में कहा जाता है कि वह वैसे ही कार्य करती है जैसे वृक्ष फलों को उत्पन्न करते हैं। पुरुष स्वयं रचनात्मक शक्ति नहीं है, परन्तु प्रकृति जो ‘अनेक रूप विश्व' को उत्पन्न करती है, वह पुरुष के मार्गदर्शन एवं संपर्क के कारण ही करती है । इस सिद्धान्त को लंगड़े और अंधे के उदाहरण द्वारा समझाया हैं।७३ सांख्य के अनुसार सृष्टि न यथार्थ है न अयथार्थ, फिर भी वर्णनीय है, क्योंकि अवर्णनीय की सत्ता नहीं है। सांख्य मतानुसार उसका न तो अस्तित्व है और न ही मात्र वैचारिक सत्ता । यह जगत् प्रकृति के नित्य रूप में विद्यमान रहता है और अपने अस्थायी परिवर्तित रूपों में विलुप्त हो जाता है। यह विकास और विलय का चक्र अनादि-अनंत है। प्रकृति का यह नृत्य मुक्ति तक चालू रहता "रका९ . ६९. असदकरणादुपादानग्रहात् सर्वसम्भवाभावात् । शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ।-सांख्यकारिकार ७०. नहि नीलं शिल्पीसहस्त्रणे पीतं कर्तुं शक्यते । - तत्त्व. कौमुदी. २.९ ७१. सांख्यप्रवचनसूत्र, ३.३१ ७२. सांख्यप्रवचनसूत्र, वृत्ति, २.१ ७३. पुरुषस्य दर्शनार्थं कैवल्यार्थं तथा प्रधानस्य । -सांख्यकारिका, २१ ७४. सांख्यप्रवचनसूत्र, ५.५४ ७५. सांख्यप्रवचनसूत्र, ५.५५ ७६. सांख्यप्रवचनसूत्र, १.४२ ७७. सदसत्ख्यातिविधिबाधात् ।-सांख्यप्रवचनसूत्र, ५.५६ ७८. सांख्यप्रवचनसूत्र, ३.३६ १७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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