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________________ नहीं है, इनके मध्य मात्र आकाश है। यदि 'शब्द' आकाश का गुण होता तो सूर्य में होने वाला विस्फोट अवश्य सुनाई देता; क्योंकि आकाश सर्वत्र है। जैनदर्शन ने आकाश का गुण शब्द न मानकर अवगाहन माना है। समस्त पदार्थों को रहने का स्थान देना और किसी प्रकार की रुकावट न डालना, इसे आगम की भाषा में अवगाहन कहते हैं । अवगाहन का अर्थ मात्र इतना ही नहीं है कि पृथक-पृथक पदार्थ अपने-अपने स्थान पर स्थित रहें, अपितु अवगाहन का अर्थ है- पदार्थ चाहे जहाँ ठहर सके । इसी गुण के कारण पदार्थ चाहे जहाँ प्रवेश भी पा सकता है और रह भी सकता है, जैसे शीशे में प्रकाश प्रविष्ट भी हो सकता है और और स्थित भी हो सकता है। आज के विज्ञान में यह प्रयोग सिद्ध है कि पदार्थ एक दूसरे में प्रविष्ट हो जाता है । एक्स-रे की किरणें, चुंबक की किरणें तथा रेडियों की विद्युत तरंगें जो कि सूक्ष्म पदार्थ हैं, अन्य पदार्थ में प्रवेश पाते हुए स्पष्ट दिखते हैं । एक्स-रे शरीर में से आरपार हो जाता है और सामने वाली प्लेट पर शरीर के अन्दर का फोटो खिंच जाता है। रेडियो की विद्युत तरंगें पर्वतों तक को भेदकर दूर-दूर देशों से हमारे पास चली आती हैं। जैसा कि आकाश के प्रदेशों के विवेचन में हमने स्पष्ट किया था कि आकाश के असंख्यात प्रदेश हैं। यहाँ प्रश्न होता है कि आकाश के असंख्यात प्रदेशों में अनन्तानन्त पदार्थ कैसे रह सकते हैं? इसका उत्तर यही है कि अनन्तानन्त पदार्थ एक दूसरे में समाकर रहते हैं । जीव तो होता ही अमूर्त है और अमूर्त इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे एक दूसरे से टकराये बिना एक ही स्थान में स्वाभाविक रूप से रह सकते हैं। मात्र मूर्त पदार्थ ही स्थान घेरते हैं और एक दूसरे से टकराते हैं। मूर्तिक पदार्थ के छह भेदों में भी सूक्ष्म स्कन्ध और सूक्ष्म परमाणु तो यथास्थिति पदार्थों में समा सकते हैं। केवल मूर्तिक स्थूल पदार्थ ही टकराते हैं और एक दूसरे में नहीं समा सकते। इस प्रकार जैनदर्शन वह पहला दर्शन है, जिसने आकाश का गुण शब्द न मानकर अवगाहन माना है और शब्द को पुद्गल की क्षणिक और अशाश्वत पर्याय मात्र लाना है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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