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________________ एक घड़ी भी बायी गयी है, जो अन्धों को मार्गदर्शन दे सकती है। घड़ी की नोक से लेसर किरणें निकलेंगी और मार्ग में रुकावट डालने वाली वस्तुओं से टकराकर पुनः उपकरण में लौट आयेंगी। लौटी हुई किरण द्वारा रुकावट डालने वाली वस्तुओं का ज्ञान थपकी द्वारा अन्धे की हथेली पर आयेगा, जिससे वह जान सके कि उधर जाना ठीक नहीं । आधुनिक विज्ञान ने प्रकाश को पदार्थ के साथ भारवान् भी स्वीकार किया है। प्रकाशविशेषज्ञों का कथन है सूर्य के प्रकाश विकिरण का एक निश्चित भार होता है, जिसे आज के वैज्ञानिकों ने ठीक तरह से नाप लिया है। प्रत्यक्ष में यह भार बहुत कम होता है। पूरी एक शताब्दी में पृथ्वी के एक मील के घेरे में सूर्य के प्रकाश का जो चाप पड़ता है, उसका भार एक सेकण्ड के पचासवें भाग में होने वाली मूसलाधार वर्षा के चाप के बराबर है। यह भार इतना कम इसलिए लगता है कि विराट् विश्व में एक मील का क्षेत्र नगण्य से भी नगण्य हैं । यदि सूर्य के प्रकाश के पूरे चाप का भार लिया जाय तो वह प्रति मिनिट २५,००,००,००० टन निकलता है । यह एक मिनिट का हिसाब है । घण्टा, दिन, मास, वर्ष, सैकड़ों, हजारों, लाखों, करोड़ों, अरबों वर्षों का हिसाब लगाइये, तब पता चलेगा कि प्रकाश विकिरण के चाप का भार क्या महत्व रखता है । ९७ विज्ञान द्वारा पुष्ट जैनदर्शन में स्वीकृत प्रकाश भारवान् और पुद्गल है । स्थूलता के आधार पर पुद्गल के छः भेदः - नियमसार में कुन्दकुन्दाचार्य ने एवं गोम्मटसार के जीवकाण्ड में आचार्य नेमिचन्द्र ने पुद्गल के छः भेद बातये हैं- अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म । १. अतिस्थूलः - जो स्कन्ध टूट कर पुनः जुड़ न सकें वे अतिस्थूल हैं, जैसेपृथ्वी, पर्वत आदि । ९ २. स्थूलः- जो स्कन्ध पृथक्-पृथक् होकर पुनः मिल सकें, वे स्थूल कहलाते हैं, जैसे घी, जल, तेल आदि । १०० ९७. नवनीत दिसम्बर १९५५ पृ. २९ ९८. नियमसार गा. २१ ९९. नियमसार गा. २२ पूर्वार्द्ध १००. नियमसार गा. २२ उत्तरार्द्ध Jain Education International २३१ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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