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'एक वर्ष में पूर्ण करूँगी,' एक यही हो तेरा नारा ।" . उनके प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त कर मैं अपने समर्पण को नहीं आँकना चाहती। क्योंकि वे सर्वतोभावेन मेरी श्रद्धा और स्नेह के केन्द्र हैं।
.. इसी क्रम में, एक पूर्ण संकल्प के साथ मैं मालपुरा गुरुदेव श्री जिनकुशलसूरि के धाम पहुँची और दर्शन के प्रथम क्षण में ही मैंने गुरुदेव की चरण पादुका के समक्ष आत्मनिवेदन किया “मुझे इस स्थान पर अपना अध्ययन करना ही है जो तेरे आशीर्वाद बिना असंभव है। “प्रयत्न मेरा व कृपा तेरी"। मैं निश्चित् रूप से कह सकती हूँ- मेरे इस निवेदन को गुरुदेव ने सुना ही नहीं, पूर्ण आशीर्वाद भी दिया और इसी कारण यह शोध प्रबन्ध कुछ ही माह में संपूर्ण तैयार हो गया। मैं अभिभूत हूँ . गुरुदेव की इस कृपामयी अमीवृष्टि पर। . ___ मैं समग्रभावेन सादर सविनय नतमत्सक हूँ, दिव्याशीष-प्रदात्री, मेरे अंतर्मन में आसीन, रग-रग में बसी आगमज्योति अध्यात्मयोगिनी, अनेकों ग्रंथों की निर्मात्री अपनी गुरुवर्या प्रवर्तिनी श्री प्रमोदश्री जी महाराज के श्रीचरणों में, जिनके नाम से जुड़ने का सौभाग्य मुझे उपलब्ध हुआ। __मैं इन क्षणों में अपनी हार्दिक कृतज्ञता अभिव्यक्त किये बिना नहीं रह सकती - मेरी प्रारम्भिक शिक्षा से आज तक की शिक्षायात्रा से जुड़े प्रेरणादीप श्री आर. एम. कोठारी, आई. ए. एस. जोधपुर के प्रति ! यद्यपि अभिव्यक्ति की एक सीमा है और वह मात्र चार पंक्तियों में सिमट गयी है पर मेरे भावों में उनके प्रति असीम आस्था के स्वर गूंज रहे हैं। क्योंकि अगर वे मुझे अध्ययन से जुड़े रहने की निरन्तर निःस्वार्थ प्रेरणा नहीं देते तो संभवतः यह यात्रा अधूरी रह सकती थी। उन्होंने साध्वी के अनुरूप मुझे सम्मान तो दिया ही, उससे भी अधिक पिता बनकर स्नेहसिक्त प्रेरणा भी दी। .. मैं अपने मार्गदर्शक विद्वद्वर्य सरलता की प्रतिमर्ति श्री डॉ. वाई. एस. शास्त्री, आचार्य, एम. ए., पी.-एच. डी. (Reader in Philosophy) की हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने मेरे शोधकार्य की विषय वस्तु को अन्यान्य अध्ययन अध्यापन की व्यस्तता के बावजूद देखा, जांचा, परखा एवं आवश्यक निर्देशों के साथ अविलम्ब मुझे लौटा भी दिया। मेरी अनुकूलता को उन्होंने प्रमुखता दी। अगर उनका अपेक्षित सानुग्रह सहयोग नहीं मिलता तो प्रस्तुति की अवधि और भी बढ़ सकती थी।
मैं श्री डॉ. नरेन्द्र भानावत के अगाध ज्ञानप्रेम को भी विस्मृत नहीं कर पा रही हूँ। वे मेरे अनुरोध को स्वीकार कर अपनी धर्मपत्नी डॉ. शान्ता भानावत के साथ मालपुरा
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