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________________ स्पष्ट मान्यता मेक्स्वेन वैज्ञानिक के बाद सिद्धान्त रूप में स्वीकार कर ली गयी । उन्होंने प्रकाश को 'विद्युत चुंबकीय विक्षोभ' (Electromagnatic disturbance) के रूप में मान्यता दी। अब ईथर का स्वरूप और अस्तित्त्व निश्चित सा हो गया । अमेरिकन भौतिक विज्ञानवेत्ता ए. ए. माइकेलसन और ई. डब्ल्यू मोरले ने क्लीवलेण्ड में सन् १८८१ में ईथर के संबन्ध में एक भव्यपरीक्षण किया । उस परीक्षण के पीछे उनका तर्क था कि यदि संपूर्ण आकाश केवल ईथर का गतिहीन सागर है तो ईथर के बीच पृथ्वी का ठीक उसी तरह पता लगना चाहिये और पैमाइश होना चाहियेजैसे नाविक सागर में जहाज के वेग नापते हैं। नाविक जहाज की गति का माप सागर में लट्ठा फेंककर और उससे बंधी रस्सी की गांठों के खुलने पर नजर रखकर लगाते हैं। अत: मोरले और माइकेलसन ने लट्ठा फेंकने की क्रिया की । यह लट्ठा प्रकाश की किरण के रूप में था । यदि प्रकाश सचमुच ईथर में फैलता है तो उसकी गति पर पृथ्वी की गति के कारण उत्पन्न ईथर की धारा का प्रभाव पड़ना चाहिये। विशेष तौर पर पृथ्वी की गति की दिशा में फेंकी गयी प्रकाश - किरण में ईथर की धारा से उसी तरह हल्की ब्राधा पहुँचनी चाहिये, जैसी बाधा का सामना एक तैराक को धारा के विपरीत तैरते समय करना पड़ता है । इसमें अंतर बहुत थोड़ा होगा; क्योंकि प्रकाश का वेग एक सेकेण्ड में १,८६,२८४ मील है जबकि सूर्य के चारों ओर अपनी धुरी पर पृथ्वी का वेग केवल बीस मील प्रतिसेकण्ड होता है । अतएव ईथर धास को विपरीत दिशा में फेंके जाने पर प्रकाशकिरण की गति १,८६, २६४ मील होनी चाहिए और सीधी दिशा में फेंकी जाये तो १,८६,३०४ मील। इन विचारों को मस्तिष्क में रखकर माइकेलसन और मोरले ने एक यंत्र का निर्माण किया । इस यंत्र की सूक्ष्मदर्शिता इस हद तक पहुँची हुई थी कि वह प्रकाश के तीव्र वेग में प्रति सेकेण्ड एक-एक मील के अंतर को भी अंकित कर लेता था। इस यंत्र को उन्होंने व्यतिकरण मापक (Interferometer) नाम दिया। कुछ दर्पण इस तरह लगाये हुए थे कि एक प्रकाश किरण को दो भागों में बांटा जा सकता था और एक ही साथ दो दिशाओं में उन्हें फेंका जा सकता था । यह सारा परीक्षण इतनी २५. डॉ. आइन्स्टीन और ब्रह्माण्ड - लिकंन बारनेट पृ. ४२ १६२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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