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में पूछा, तो परमात्मा ने ज्ञान और दर्शन एक ही काल में असंभव बताए और वा कारण दोहराया।१५० ____ गौतम और महावीर की इसी प्रकार की चर्चा प्रज्ञापना में भी उपलब्ध हों।
गौतम - जिस समय केवली रत्नप्रभा नरक को देखते हैं, उस समय जाना
. हैं या नहीं? महावीर - यह संभव नहीं है। गौतम - इसका क्या कारण है कि ज्ञान और दर्शन युगपत् नहीं होता?
महावीर - चूँकि ज्ञान साकार है और दर्शन अनाकार । अतः एक साथ दोन . . उपयोग नहीं होते ।१५१
परन्तु इसके विपरीत, श्वेताम्बर परम्परा के ही प्रखर तार्किक आचार्य सिद्धसेन अपनी युक्तियों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि ज्ञान और दर्शन युगपत् होते हैं।
ज्ञानावरणीय कर्मक्षय से उत्पन्न होने वाला केवलज्ञान जैसे उत्पन्न होता है वैसे ही दर्शनावरणीय कर्मक्षय से केवल दर्शन भी उत्पन्न होता है ।१५२ ___ कर्मोपशम के कारण छद्मस्थ में दर्शन और ज्ञान में क्रम सम्भव हो पाता है, किन्तु ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय-इन चार घातीकम का जब युगपत् क्षय होता है तब ज्ञान और दर्शन में क्रम की कल्पना नहीं की जा सकती; अन्यथा कालमात्रा तक एक केवलज्ञानी के शेष तीन घातीकों की सत्ता मानी पड़ेगी, दूसरे शब्दों में यह कहना होगा कि मोहनीय और अन्तराय कर्मों की उपस्थिति में भी केवलज्ञान और केवलदर्शन सम्भव हैं। इसी प्रकार की अन्य आपत्तियाँ आ पड़ेंगी।
जब ज्ञान के आवरण क्षय हो जाते है तो अज्ञान नहीं रह जाता; उसी क्षण ज्ञान हो जाता है, वैसे ही दर्शन अवरोधक आवरण का क्षय होने पर दर्शन गुण भी १५०. भगवती १८.८.२१.२२ १५१. प्रज्ञापना ३०.३१९ पृ. ५३१ १५२. सं. त. २.५
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