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________________ क्रमशः विचार किया तथा उन सभी को अनित्य और अनात्म घोषित कर दिया। वे अपने श्रोताओं को भी प्रश्नोत्तर की शैली में युक्तिपूर्वक विश्वास करवा देते थे कि सब कुछ अनात्म है और आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है।" ___बुद्ध के अनुसार जन्म, मरण, कर्म, विपाक, बन्ध और मोक्ष-सब कुछ है, परन्तु इनका स्थायी आधार नहीं है। ये समस्त अवस्थाएं अपने पूर्ववर्ती कारणों से उत्पन्न होती रहती हैं और एक नवीन कार्य को उत्पन्न करके नष्ट होती रहती हैं। इस प्रकार संसार चक्र चलता रहता है। उत्तरवर्ती अवस्था पूर्ववर्ती अवस्था से न सर्वथा भिन्न है और न अभिन्न, अतः अव्याकृत है। ५ न कोई कर्म का कर्ता है और न फर्मफल का भोक्ता, मात्र शुद्ध थर्मों की प्रवृत्ति होती है, यही सम्यग्दर्शन है। ये 'कर्म' और 'फल' पौर्वापर्य से संबन्ध रहित बीज और वृक्ष की तरह अनादिकाल से एक-दूसरे पर आश्रित हैं और अपने-अपने हेतुओं पर अवलम्बित होकर प्रवृत्त होते हैं। यह परम्परा कब निरुद्ध होगी, यह भी नहीं बताया जा सकता। जीव के विषय में कुछ शाश्वतवाद का और कुछ उच्छेदवाद का अवलम्बन लेते हैं और परस्पर विरोधी दृष्टिकोण रखते हैं।६ बुद्ध आत्मा के शाश्वत और अशाश्वत के प्रश्न पर मौन रहते थे, क्योंकि शाश्वत कहते तो उसका समर्थन होता जो मत स्थिरता में विश्वास रखता है और अशाश्वत कहते तो उनका समर्थन होता जो शून्यवाद में विश्वास करते हैं। नागसेन और राजा मिलिन्द के प्रश्नोत्तर में भी आत्मा के स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। राजा मिलिन्द पूछता है-आत्मा क्या है? तब नागसेन समाधान के स्थान पर प्रश्न करते हैं कि क्या डंडे को, धुरा को, पहिये को और ढांचे को रथ ८४. संयुक्तनिकाय १२.७०.३२-३७ ८५. संयुक्तनिकाय १२.१७.२४, मिलिन्दप्रश्न २.२५.३३ ८६. गणधारवादः- प्रस्तावना पृ. ९२ ८७. मज्झिम निकाय मूलपण्णासक ३५.३.५-३४ ८८. भा. दर्शन डॉ. राधाकृष्णन् भाग एक पृ. ३८४ ८० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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