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________________ ४३ ग्रन्थ के अन्त में आर्य वीरभद्र का नाम अंकित है। इससे इस ग्रन्थ के रचयिता आर्य वीरभद्र (लगभग १० वीं शती) माने जाते हैं। इस पर भुवनतुंग की वृत्ति और गुणरत्न की अवचूरि भी प्राप्त होती है। यह ग्रन्थ पद्यात्मक तथा प्राकृत भाषा में निबध्द है। २. आतुरप्रत्याख्यान ____ 'आतुर प्रत्याख्यान' में पण्डित व्यक्ति को आतुर अर्थात् रोगादि के निमित्त से मरणांतिक कष्ट उपस्थित होने पर कौनसा प्रत्याख्यान करना चाहिए, कैसी भावना रखनी चाहिए आदि की चर्चा करते हुए समाधिमरण के विषय में बताया गया है। अतः इसका नाम आतुरप्रत्याख्यान है। समाधिमरण की चर्चा होने से इसे 'अन्तकाल' प्रकीर्णक भी कहा गया है। इसका अन्य नाम 'बृहदातुरप्रत्याख्यान' भी है। इसमें ७० गाथायें हैं। मुख्य रूप से यह पद्यात्मक शैली में लिखा गया है किन्तु १० गाथाओं के बाद कुछ गद्य भाग भी है। इसमें प्रथम बालपंडित मरण की व्याख्या की है फिर देशविरत श्रावक की व्याख्या करते हुए पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत एवं संलेखना की चर्चा की है। तत्पश्चात् बालपंडित अर्थात् व्रतधारी श्रावक की वैमानिकदेव के भव में उत्पत्ति होती है और वह सात भव में सिद्धि प्राप्त करता है-इसकी चर्चा है। पंडित मरण में पूर्व गृहीत व्रतों में अतिचारों की शुद्धि करके जिन एवं आचार्य की वन्दनापूर्वक सर्व प्राणातिपातविरति, सर्व मृषावादविरति, सर्व अदत्तादानविरति, सर्व अबह्मचर्यविरति और सर्व परिग्रहविरति ग्रहण करे; साथ ही सर्व बाह्याभ्यंतर उपाधि और अठारह पाप स्थानकों के त्याग पूर्वक केवल आत्मा का ध्यान करें तथा एकत्व भावना का चिन्तन करें, इसकी प्रेरणा दी गई है। . . इसमें मरण के तीन प्रकार बताये गये हैं- बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण। बालमरण वाला विराधक होने से दुर्लभ बोधि होता है। पंडितमरण का वरण करने वाला आराधक होने से तीन भव में मोक्षगामी होता है। - चतुःशरण गाथा ६३ । .५० 'इअ जीवपमायहारि वीर भदंतमेयमज्झयणं । ५१ 'तिविहं भगति मरणं, बालाणं बालपंडियाणं च। तइयं पण्डितमरणं, ज केवलिणो अनुमरंति।।' - आतुरप्रत्याख्यान गाथा ३५ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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