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पर्यावरण क्या है ?
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पर्यावरण में परि + आवरण इन दो शब्दों का समावेश है । 'परि' का अर्थ चारों ओर से तथा 'आवरण' का अर्थ घिराव या आवरण है । इस प्रकार चारों ओर व्याप्त (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, वनस्पति तथा अन्य सभी जीव एवं जड़ जगत जो प्राणी के जीवन विकास को प्रभावित करते हैं, पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं । संक्षेप में वह प्राकृतिक परिवेश जिसके आधार पर जीव का जीवन चलता है, पर्यावरण है ।
पर्यावरण की सीमा में मात्र मनुष्य, पशु, पक्षी, जीव-जन्तु की सृष्टि ही नहीं अपितु पूरा ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल, गिरी, कन्दरा, सागर सरिता, वन - उपवन, भूपृष्ठ, जलपृष्ठ आदि सभी का अन्तर्भाव है । अतः पर्यावरण बहु आयामी है । पर्यावरण के मुख्यतः दो प्रकार हैं ।
1. सजीव पर्यावरण और 2. निर्जीव पर्यावरण । पशु-पक्षी - मानव आदि जीवसृष्टि सजीव पर्यावरण के अन्तर्गत हैं जबकि जीवसृष्टि के चारों ओर व्याप्त भौतिक तत्वों का पर्यावरण निर्जीव पर्यावरण है ।
सजीव पर्यावरण का एक पक्ष वैचारिक जगत से जुड़ा हुआ है । मानसिक विचार धारा से पर्यावरण प्रभावित होता है अतः विचार पक्ष भी पर्यावरण का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है ।
पर्यावरण प्रदूषित क्यों ?
विश्व - व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिये प्राकृतिक संतुलन अत्यन्त आवश्यक है किन्तु पाश्चात्य-संस्कृति के अंधानुकरण की प्रवृत्ति, निरंकुश वैज्ञानिक आविष्कार, सत्ता, सम्पत्ति, सम्मान आदि की महत्त्वाकांक्षा, सुविधावादी विचारधारा आदि से प्राकृतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त होती जा रही है ।)
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प्रकृति की कितनी सुन्दर व्यवस्था है ! हमारे वायुमण्डल में 'ओजोन' की एक परत है । सूर्य की पराबैंगनी किरणें 'ओजोन' की छतरी से छनकर पृथ्वी तक पहुंचती है । वे किरणें इतनी जहरीली, उष्ण होती हैं कि यदि वे सीधी पृथ्वी पर आ. जायें तो यहां जीवन ही समाप्त हो जाय । पेड़-पौधे सूख जाय, समूचा वातावरण तापमय बन जाय । ओजोन की छतरी हमारी सुरक्षा करती है किन्तु उसमें भी छेद हो गया है और वह सतत् बढ़ता ही जा रहा है । उसके परिणाम स्वरूप प्रकृति
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