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कारण उनमें आचारगत विभिन्नता होती है। उत्तराध्ययनसूत्र में इस आचारगत विभिन्नता की समस्या को तार्किक आधारों पर जिस प्रकार से समन्वित किया गया है उसमें आज के धार्मिक मतभेदों को सुलझाने की दिशा में सही निर्देश उपलब्ध होते हैं। (४) मानसिक विषमता
मानसिक विषमता तनाव की अवस्था है। आज का मानव तनाव की त्रासदी से बुरी तरह ग्रस्त होता जा रहा है और दुःख एवं अशान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है। आज शारीरिक अस्वस्थता का भी मूल कारण भी बनता जा रहा है। पाश्चात्य चिकित्सकों ने भी यह घोषित कर दिया है कि ८० प्रतिशत रोगों के कारण मनोवेग एवं तनाव हैं। .
जैनदर्शन के अनुसार मानसिक विषमता का मुख्य कारण इच्छायें और आकांक्षायें हैं। उनके परिणामस्वरूप राग, द्वेष और कषाय जन्म लेते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में चार कषायों का वर्णन उपलब्ध होता है- क्रोध, मान, माया और लोभ। इसमें इन चारों कषायों से मुक्त होने के अनेक उपाय प्रतिपादित किये गये
उत्तराध्ययनसूत्र के तेईसवें अध्ययन में कहा गया है कि एक पर विजय प्राप्त कर लेने से पांच पर विजय प्राप्त की जा सकती है और पांच पर विजय प्राप्त कर लेने से दस पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि एक अर्थात् मन पर विजय प्राप्त करने पर पांच अर्थात् एक मन और चार कषाय इन पांचों पर विजय प्राप्त की जा सकती है और इन पांचों पर विजय प्राप्त कर लेने पर दस अर्थात् एक मन, चार कषाय एवं पांच इन्द्रियां इन दसों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार कषाय पर विजय प्राप्त करने के लिए मन पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है। पुनश्च उत्तराध्ययनसूत्र में कषाय को अग्नि कहा है; साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि श्रुत, शील एवं तप के द्वारा कषाय पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
१५ उत्तराध्ययनसूत्र २६/६८ से ७१। । १९ 'एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस ।
दसहा ३ जिणिताणं, सबसत्तू जिणामहं ।' 'एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इंदियाणि य ।
ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी ।। २० कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय-सीलतवो जलं ।
- उत्तराध्ययनसूत्र २३/३६ एवं ३८ । - उत्तराध्ययनसूत्र २३/५३ ।
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