SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन-रेखा वहाँ से मेरा ननिहाल दो मील था। अतः रात को बहुत जल्दी उठकर चल पड़े। वे मुझे गोद में उठाए हुए तेजी से कदम बढ़ा रहे थे । पहाड़ी रास्ता था और पगडण्डी के रास्ते से चल रहे थे। दुर्भाग्यवश रास्ता भूल गए और घने जंगल में भटक गए। फिर भी वे साहस के साथ बढ़ रहे थे कि एक झाड़ी में से शेर निकल आए। शेरों को देखते ही उन्होंने मुझे घास के गट्टर की तरह जमीन पर एक ओर फेंक दिया और म्यान में से तलवार निकालकर शेरों पर टूट पड़े। मेरे बदन में काफी चोट लगी, फिर भी मैं भय के कारण सहम गई और शेरों के साथ चलने वाले उनके संघर्ष को देखती रही। कई घंटों तक उनमें और शेरों में युद्ध चलता रहा। आखिर, उन्होंने साहस के साथ शेरों पर विजय प्राप्त की। एक-दो शेर मर गए और एक-दो अत्यधिक घायल होकर झाड़ियों में जा छिपे । पिता जी का शरीर भी काफी क्षित-विक्षित हो गया था। परन्तु उन्होंने उसकी कुछ भी परवाह नहीं की। मुझे गोद में उठाया और रास्ता खोजते हुए आगे बढ़ते चले। भाग्यवश, सही रास्ता मिल गया और सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे पूर्व ही वे मुझे लेकर मेरे ननिहाल आ पहुंचे। अभी तक घर का द्वार नहीं खुला था। अतः उसे खुलवाया, परन्तु घावों में से खून बह रहा था और वे पर्याप्त थक चुके थे। इसलिए वे न तो ठीक तरह से खड़े ही रह सके और न किसी से बात ही कर पाए। वे तो एकदम चारपाई पर गिर पड़े। उनकी यह दशा-- हालत देखकर मेरे ननिहाल वाले काफी घबरा गए। फिर मैंने उन्हें सारी घटना कह सुनाई। उन्होंने उनको नसीराबाद के अस्पताल में दाखिल करवाया, वहाँ कई महीने उपचार होता रहा और डाक्टरों के सद्प्रयत्न से वे पूर्णतः स्वस्थ हो गए। स्नेह और प्रतिज्ञा पिताजी का स्वाथ्य ठीक होते ही, वे पुनः मुझे घर ले गए । क्योंकि मेरी बड़ी बहिन का विवाह था। विवाह खूब धूम-धाम से हो रहा था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy