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________________ योग-शास्त्र ... यहाँ तक भारतीय परंपरा में प्रवहमान तीनों-१. वैदिक, २. जैन, और ३. बौद्ध, योग-धारामों का अध्ययन किया है। और उनमें रही हुई दृष्टि समानता या विचार समानता को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। भारतीय योग-साहित्य एवं योग-साधना पर संक्षेप में, किन्तु खुलकर विचार करने के बाद अब प्रस्तुत ग्रन्थ अर्थात् प्राचार्य हेमचन्द्र के योग-शास्त्र पर विस्तार से विचार करेंगे। योग-शास्त्र प्राचार्य हेमचन्द्र का गुर्जर प्रान्त के राजा सिद्धराज जयसिंह पर प्रभाव था। उसके आग्रह से आपने सिद्धहेम व्याकरण की रचना की। सिद्धराज के देहावसान के बाद कुमारपाल राजसिंहासन पर प्रारूढ़ हुआ। वह भी आचार्य हेमचन्द्र का परम भक्त था। उसकी साधना करने की अभिलाषा थी और राज्य का दायित्व आने के बाद उसके सामने यह एक प्रश्न बन गया कि अब वह प्राध्यात्मिक साधना कैसे कर सकता है ? अपनी इस इच्छा को उसने प्राचार्य हेमचन्द्र के सामने अभिव्यक्त किया। उसकी अभिलाषा को पूरी करने तथा उस में प्राध्यात्मिक साधना की अभिरुचि पैदा करने के लिए आपने योग-शास्त्र की रचना की। और उसके निर्माण में इस बात का पूरा ध्यान रखा कि इससे गृहस्थ भी सरलता के साथ आध्यात्मिक साधना के पथ पर गति-प्रगति कर सके । क्योंकि, उन्हें अपना योग-शास्त्र एक गृहस्थ-उसमें भी राज्य के गुरुतर दायित्व को वहन करने वाले राजा के लिए बनाना था। अतः प्रस्तुत योग-शास्त्र में साधु धर्म के साथ गृहस्थ धर्म का भी विस्तार से वर्णन किया है। यह सत्य है कि गृहस्थ के प्राचार धर्म में उन्होंने अपनी ओर से कोई अभिनव बात नहीं कही है। उपासकदशांग सूत्र में वर्णित अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत का ही वर्णन किया है । यदि इसमें उनकी अपनी कुछ विशेषता है, तो वह यह है कि श्रावक धर्म की नींव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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