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________________ योग- शास्त्र स्तंभन कार्य में पीत वर्ण के, वशीकरण में लाल वर्ण के, क्षोभण कार्य में मूंगे के वर्ण वाले, विद्वेषण कार्य में काले वर्ण के और कर्मों का नाश करने के लिए चन्द्रमा के समान उज्ज्वल श्वेत वर्ण के ओंकार का ध्यान करना चाहिए । २३८ इस विधान से यह भी सूचित कर दिया गया है कि 'ओंकार' का ध्यान आश्चर्यजनक एवं लौकिक कार्यों के लिए भी उपयोगी होता है. और कर्मक्षय में भी उपयोगी होता है । पंच परमेष्ठि- मंत्र का ध्यान तथा पुण्यतमं मन्त्रं जगत्त्रितय-पावनम् । योगी पञ्चपरमेष्ठि- नमस्कारं विचिन्तयेत् ॥ ३२ ॥ योगी को पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र का विशेष रूप से ध्यान करना चाहिए | यह मंत्र अत्यंत पवित्र है और तीन जगत् को पवित्र करने वाला है । अष्टपत्र सिताम्भोजे कणिकायां कृतस्थितिम् । आद्यं सप्ताक्षरं मन्त्र पवित्रं चिन्तयेत्ततः ॥ ३३ ॥ सिद्धादिक-चतुष्कं च दिक्पत्रेषु यथाक्रमम् । चूलापाद-चतुष्कं च विदिक्पत्रेषु चिन्तयेत् ॥ ३४ ॥ श्राठ पाँखुड़ी वाले सफेद कमल का चिन्तन करना चाहिए। उस कमल की कणिका में स्थित सात अक्षर वाले 'नमो अरिहंताणं' इस पवित्र मंत्र का चिन्तन करना चाहिए। फिर सिद्धादिक चार मंत्रों का दिशाओं के पत्रों में अनुक्रम से, अर्थात् पूर्व दिशा में 'नमो सिद्धाणं' का, दक्षिण दिशा में 'नमो आयरियाणं' का, पश्चिम दिशा में 'नमो उवज्झायाणं' का और उत्तर दिशा में 'नमो लोए सव्वसाहूणं' का चिन्तन करना चाहिए । विदिशा वाली चार पंखुड़ियों में अनुक्रम से चार चूलिकाओं + Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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