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________________ योग- शास्त्र स्फुलिंग- सन्तति ध्यायेज्ज्वालामालामनन्तरम् । ततो ज्वाला-कलापेन दहेत्पद्म हृदि स्थितम् ।। १५ ।। " नाभि के भीतर सोलह पंखुड़ी वाले कमल का चिन्तन करना - चाहिए। उस कमल की प्रत्येक कणिका पर महामंत्र प्रर्ह" स्थापितकरना चाहिए और उसके प्रत्येक पत्ते पर अनुक्रम से 'अ, आ, इ, ई,. सु, ऊ, ऋ, ऋ, लृ, लृलु, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः'—यह सोलह स्वर स्थापित करने चाहिए । तदष्ट कर्म - निर्माणमष्ट - पत्रमधो मुखम् । २२६ दहत्येव महामंत्र : ध्यानोत्थः प्रब्रलानलः ॥ १६ ॥ . ततो देहाद्, बहिर्ध्यायेत्त्र्यत्रं वह्निपुरं ज्वलत् । लाञ्छितं स्वस्तिकेनान्ते वह्निबीजसमन्वितम् ।। १७ ।। देहं पद्म च मंत्राचिरन्तर्वह्निपुरं बहिः । कृत्वाऽशु भस्मसाच्छाम्येत् स्यादाग्नेयीति धारणा ॥ १८ ॥ ऐसा करने के पश्चात् हृदय में आठ पंखुड़ियों वाले कमल का चिन्तन करना चाहिए। उसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर अनुक्रम से १: ज्ञानावरण, २. दर्शनावरण, ३. वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. श्रायु, ६. नाम, ७. गोत्र, और अन्तराय, यह ग्राठ कर्म स्थापित करने चाहिए । यह कमल अधोमुख होना चाहिए । 7 ...इसके पश्चात् रेफ, बिन्दु और कला से युक्त, महामंत्र के 'र्ह" अक्षर के रेफ में से धीमी-धीमी निकलने वाली धूम की शिखा का चिन्तन करना चाहिए । फिर उसमें से अग्नि की चिनगारियों के निकलने का • चिन्तन करना चाहिए और फिर निकलती हुई अनेक ज्वालाओं का चिन्तन करना चाहिए । इन ज्वालाओं से हृदय में स्थित पूर्वोक्त - आठ दल वाले कमल को दग्ध करना चाहिए और सोचना चाहिए कि महामंत्र ‘अर्ह” के ध्यान से उत्पन्न प्रबल अग्नि अवश्य ही कर्म से युक्त कमल को भस्म कर देती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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