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________________ पंचम प्रकाश १६५ तत्पश्चात् वह दर्पण आदि, जिसमें विद्या का अवतरण किया गया है, एक कुमारी कन्या को दिखलाना चाहिए । जब कन्या को उसमें देवता का रूप दिखलाई दे, तब उससे आयु के विषय में प्रश्न करना चाहिए। उस प्रश्न का जो उत्तर मिलेगा, उस निर्णय को कन्या अभिव्यक्त कर देगी। श्रेष्ठ साधक की योग या तप-साधना से आकृष्ट देवता की प्राकृति स्वयं ही-असंदिग्ध रूप से, उसे अनागत, प्रागत और वर्तमान काल सम्बन्धी आयु का निर्णय बता देती है। शकुन द्वारा काल-ज्ञान अथवा शकुनाद्विद्यात्सज्जो वा यदि वाऽऽतुरः । । स्वतो वा परतो वाऽपि गृहे वा यदि वा वहिः ।। १७७ ॥ कोई पुरुष नीरोग हो या रोगी हो, अपने आप से और दूसरे से, घर के भीतर हो या घर के बाहर, शकुन के द्वारा काल-मृत्यु के समय का निर्णय कर सकता है। अहि-वृश्चिक-कृम्या-खु-गृहगोधा-पिपीलिकाः । यूका-मत्कुणलूताश्च वल्मीकोऽथोपदेहिकाः ॥१७८।। कीटिका घृतवर्णाश्च भ्रमर्यश्च यदाधिकाः । उद्वेग-कलह-व्याधि-मरणानि तदा दिशेत् ।।१७६।। यदि सर्प, बिच्छू, कीड़े, चूहे, छिपकली, चिटियाँ,जू, खटमल, मकड़ी, . बांबी, उदेही-घृतवर्ण की चीटिये और भ्रमर प्रादि बहुत अधिक परिमाण में दृष्टिगोचर हों तो उद्वेग, क्लेश, व्याधि अथवा मरण होता है। उपानद्वाहनच्छत्र-शस्त्रच्छायाङ्ग - कुन्तलान् । चञ्च्चा चुम्बेद्यदा काकस्तदाऽऽसन्नैव पंचता ॥१८०॥ अश्रुपूर्णदृशो गावो गाढं पादैर्वसुन्धराम् । खनन्ति चेत्तदानीं स्याद्रोगो मृत्युश्च तत्प्रभोः॥१८१॥ : , पा . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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