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पंचम प्रकाश
कर्ण से कालज्ञान
ध्यात्वा हृद्यष्टपत्राब्जं श्रोत्रे हस्ताग्र-पीडिते । न श्रूयेताग्नि-निर्घोषो यदि स्वः पञ्च-वासरान् ॥१२५।। दश वा पञ्चदश वा विंशति पञ्चविंशतिम् ।
तदा पञ्च चतुस्त्रिद्वयेक-वर्षमरणं क्रमात् ॥१२६॥ हृदय में आठ पंखुड़ी के कमल का ध्यान करके दोनों हाथों की तर्जनी अंगलियाँ को दोनों कानों में डालने पर यदि पाँच, दस, पन्द्रह, बीस या पच्चीस दिन तक अपना अग्नि-निर्घोष-तीव्रता से जलती हुई अग्नि का धक-धकाहट का शब्द सुनाई न दे, तो क्रमशः पाँच वर्ष, चार वर्ष, तीन वर्ष, दो वर्ष और एक वर्ष में मृत्यु होती है।
एक-द्वि-त्रि-चतुःपञ्च-चतुर्विशत्यहः क्षयात् ।
षडादि-षोडश-दिनान्यान्तराण्यपि शोधयेत् ॥ १२७ ॥ ___ ऊपर बतलाया गया है कि पाँच दिन तक अग्नि-निर्घोष सुनाई न दे तो पाँच वर्ष में मृत्यु होती है, किन्तु यदि छठे दिन भी सुनाई न दे या सातवें आदि दिन भी सुनाई न दे तो क्या फल होता है ? इस प्रश्न का उत्तर इस श्लोक में निम्न प्रकार से दिया गया है :.. यदि छह दिन से लेकर सोलह दिन तक अंगुली से दबाने पर भी कान में शब्द सुनाई न दे, तो पाँच वर्ष के दिनों में से क्रमशः एक, दो,
तीन, चार, पाँच आदि सोलह चौबीसियाँ कम करते हुए मृत्यु के दिनों की • संख्या का निश्चय करना चाहिए । यथा-छह दिन शब्द सुनाई न देने · पर २४ दिन कम पाँच वर्ष अर्थात् १७७६ दिन में मृत्यु होती है। सात दिन सुनाई न देने पर १७७६ दिनों में से दो चौबीसी अर्थात् ४८ दिन कम करने से १७७६ - ४८ = १७२८ दिन में मृत्यु होती है। इसी प्रकार पूर्व-पूर्व संख्या में से उपर्युक्त चौबीसियाँ कम करके मरणकाल का निश्चय करना चाहिए।
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