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________________ योग-शास्त्र यदि पन्द्रह दिन तक लगातार सूर्य - नाड़ी में पवन चलता रहे, तो .. मनुष्य ३६० दिन तक ही जीवित रहता है । १७८ एक-द्वि-त्रि- चतुः पञ्च द्वादशाह - क्रम-क्षयात् । षोडशाद्यानि पञ्चाहान्यत्र शोध्यानि तद्यथा ।। १०२ ।। सोलह, सत्तरह, अठारह, उन्नीस और बीस दिन पर्यन्त एक सूर्य - नाड़ी में वायु चलता रहे, तो पूर्वोक्त ३६० दिनों में से क्रमश: एक बारह१२, दो बारह - २४, तीन बारह - ३६, चार बारह — ४८ और पाँच बारह - ६० दिन कम कर करके जीवित रहता है, ऐसा कहना चाहिए । इसका आगे स्पष्टीकरण किया गया है । प्रवहत्येकनाक्षायां षोडशाहानि मारुते । जीवेत्सहाष्टचत्वारिंशतं दिनशतत्रयीम् ।। १०३ ॥ वहमाने तथा सप्तदशाहानि समीरणे । अह्नां शतत्रये मृत्युश्चतुर्विंशति- संयुते ॥ १०४ ॥ पवने विचरत्यष्टादशाहानि तथैव च । नाशोऽष्टाशीति-संयुक्ते गते दिन शतद्वये ।। १०५ ।। विचरत्यनिले तद्वद्दिनान्येकोनविंशतिम् । चत्वारिंशद्युते याते मृत्युदिन - शतद्वये ।। १०६ ।। विशति - दिवसाने कनासाचारिणि मारुते । साशीतौ वासरशते गते मृत्युर्न संशयः ॥ १०७ ॥ यदि किसी व्यक्ति के सोलह दिन तक एक ही नासिका में वायु चलता रहे, तो वह तीन सौ अड़तालीस - ३४८ दिन तक जीवित रहता है । यदि लगातार सत्तरह दिन तक एक ही नासिका में वायु चलता रहे, तो तीन सौ चौबीस दिन में मृत्यु होती है । इसी प्रकार अठारह दिन तक वायु चले तो दो सौ अठासी दिन में, उन्नीस दिन लगातार पवन चलता रहे, तो दो सौ चालीस दिन में और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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