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________________ पंचम प्रकाश शरत्संक्रान्तिकालाच्च पश्चाहं मारुतो वहन् । ततः पञ्च दशाब्दानामन्ते मरणमादिशेत् ॥ ८० ॥ यदि शरद् ऋतु की संक्रान्ति से अर्थात् प्रासौज शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे, तो उसकी पन्द्रहवें वर्ष में मृत्यु होनी चाहिए । श्रावणादेः समारभ्य पञ्चाहमनिलो वहन् । अन्ते द्वादश वर्षाणां मरणं परिसूचयेत् ॥ ८१ ॥ वहन् ज्येष्ठादिदिवसाद्दशाहानि समीरणः । दिशेनवम वर्षस्य पर्यन्ते मरणं ध्रुवम् ॥ ८२ ॥ प्रारभ्य चैत्राद्यदिनात् पश्चाहं पवनो वहन् । पर्यन्ते वर्षषट्कस्य मृत्यु नियतमादिशेत् ॥ ८३ ॥ श्रारभ्य माघमासादेः पञ्चाहानि मरुद्वहन् । संवत्सरत्रयस्यान्ते संसूचयति पञ्चताम् ॥ ८४ ॥ इसी प्रकार श्रावण मास के प्रारंभ से पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलता रहे, तो वह बारहवें वर्ष में मृत्यु का सूचक है । ज्येष्ठ महीने के प्रथम दिन से दस दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चलता रहे, तो नौ वर्ष के अन्त में निश्चय ही उसका मरण होगा । चैत्र मास के प्रथम दिन से पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे, तो निश्चय से छह वर्ष के अन्त में मृत्यु होगी । १७३ माघ महीने के प्रथम दिन से पाँच दिन तक एक ही नाड़ी में पवन का चलना तीन वर्ष के अन्त में मरण होने का सूचक है । सर्वत्र द्वित्रिचतुरो वायुश्चेद्दिवसान् वहेत् । अब्दभागस्तु ते शोध्या यथावदनुपूर्वशः ॥ ८५ ॥ १. यहाँ मास का आरंभ शुक्ल पक्ष से समझना चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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