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________________ पंचम प्रकाश मण्डलों का निर्देश मण्डलानि च चत्वारि नासिका-विवरे विदुः । भौम-वारुण-वायव्याग्नेयाख्यानि यथोत्तरम् ।। ४२ ।। नासिका के विवर में चार मंडल होते हैं-१. भौम-पार्थिव मंडल, २. वारुण मंडल, ३. वायव्य मंडल, और ४. आग्नेय मंडल । १. भौम-मंडल पृथिवी-बीज-सम्पूर्ण, वज्र-लाञ्छन-संयुतम् । चतुरस्रं द्रुतस्वर्णप्रभं स्याद् भौम-मण्डलम् ।। ४३ ॥ पृथ्वी के बीज से परिपूर्ण, वज्र के चिह्न से युक्त, चौरस और तपाये हुए सोने के वर्ण-रंग वाला, 'पार्थिव मंडल' है। टिप्पण-पार्थिव-बीज 'अ' अक्षर है। कोई-कोई प्राचार्य 'ल' को पार्थिव-बीज मानते हैं। प्राचार्य हेमचन्द्र ने 'क्ष' को पार्थिव-बीज माना है। २. वारुण-मंडल स्यादर्धचन्द्रसंस्थानं वारुणाक्षरलाञ्छितम् । चन्द्राभममृतस्यन्दसान्द्रं वारुण-मण्डलम् ।। ४४ ॥ वारुण-मण्डल-अष्टमी के चन्द्र के समान आकार वाला, वारुण प्रक्षर 'व' के चिह्न से युक्त, चन्द्रमा के सदृश उज्ज्वल और अमृत के झरने से व्याप्त है। ३. वायव्य-मंडल स्निग्धाञ्जनघनच्छायं सुवृत्तं विन्दुसंकुलम् । दुर्लक्ष्यं पवनाक्रान्तं चञ्चलं वायु-मण्डलम् ॥ ४५ ॥ वायव्य-मण्डल-स्निग्ध अंजन और मेघ के समान श्याम कान्ति वाला, गोलाकार, मध्य में विन्दु के चिह्न से व्याप्त, मुश्किल से मालूम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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