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योग शास्त्र
प्राणायाम के क्रम से तथा कुम्भक-प्राणायाम के अभ्यास से उसे जीतना चाहिए। पांचों वायु के बीज
प्राणापानसमानोदान-व्यानेष्वेषु च वायुषु ।
मैं 4 4 रौं लौं बीजानि ध्यातव्यानि यथाक्रमम् ॥ २१ ॥ प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान वायु को वश में करते समय या इन्हें जीतने के लिए प्राणायाम करते समय क्रमशः 'मैं' आदि बीजाक्षरों का ध्यान करना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि प्राण वायु को जीतते समय 'मैं' का, अपान को जीतते समय '4' का, समान को जीतते समय 'वै' का, उदान विजय के समय 'रौं' का और व्यानविजय के समय 'लौं' बीजाक्षर का ध्यान करना चाहिए। वायु-विजय से लाभ
प्राबल्यं जाठरस्याग्नेर्दीर्घश्वासमरुज्जयौ। लाघवं च शरीरस्य प्राणस्य विजये भवेत् ।। २२ ॥ रोहणं क्षतभंगादेरुदराग्नेः प्रदीपनम् । वर्षोऽल्पत्वं व्याधिघातः समानापानयोर्जये ॥ २३ ॥ उत्क्रान्तिर्वारि-पङ्काद्यैश्चाबाधोदान-निर्जये ।
जये व्यानस्य शीतोष्णासंगः कान्तिररोगिता ॥ २४ ॥ प्राण-वायु को जीतने से जठराग्नि प्रबल होती है, अविच्छिन्न रूप से श्वास की प्रवृत्ति होती है और शेष वायु भी वश में हो जाती हैं, क्योंकि प्राण-वायु पर सभी वायु प्राश्रित हैं। इससे शरीर में लघुता प्रा जाती है। ___यदि शरीर में घाव हो जाए तो समान-वायु और अपान-वायु को जीतने से घाव जल्दी भर जाता है, टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है, जठराग्नि
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