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________________ प्रारणायाम का स्वरूप यम, नियम, श्रासन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, योग के यह आठ अंग माने गए हैं। इनमें से चौथा अंग 'प्राणायाम' है । श्राचार्य पतंजलि आदि ने मुक्ति-साधना के लिए प्राणायाम को उपयोगी माना है । परन्तु, मोक्ष के साधन रूप ध्यान में वह उपयोगी नहीं है । फिर भी शरीर की नीरोगता और कालज्ञान में उसकी उपयोगिता है । इस कारण यहाँ उसका वर्णन किया गया है। पंचम प्रकाश प्राणायामस्ततः कैश्चिदाश्रितो ध्यान- सिद्धये । शक्यो - नेतरथा कत्तु मनः पवन-निर्जयः ॥ १ ॥ मुख और नासिका के अन्दर संचार करने वाला वायु 'प्राण' कहलाता है । उसके संचार का निरोध करना 'प्राणायाम' है । श्रासनों का अभ्यास करने के पश्चात् किन्हीं - किन्हीं आचार्यों ने ध्यान की सिद्धि के लिए प्राणायाम को उपयोगी माना है, क्योंकि प्राणायाम के बिना मन और पवन जीता नहीं जा सकता । प्रारणायाम से मनोजय मनो यत्र मरुत्तत्र मरुद्यत्र मनस्ततः । श्रतस्तुल्य- क्रियावेतौ संवीती क्षीर- नीरवत् ॥ २ ॥ जहाँ मन है, वहीं पवन है और जहाँ पवन है, वहाँ मन है । अतः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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