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________________ १०४ योग-शास्त्र श्रावक की दिनचर्या ब्राह्म मुहूर्ते उत्तिष्ठेत् परमेष्ठि स्तुति पठन् । किं धर्मा किं कुलश्चास्मि किं व्रतोऽस्मीति च स्मरन्।।१२१।। ब्रह्म मुहूर्त में निद्रा का परित्याग करके श्रावक पञ्च परमेष्ठी की स्तुति करे । तत्पश्चात् वह यह विचार करे-“मेरा धर्म क्या है ? मैं किस कुल में जन्मा हूँ ? मैंने कौन से व्रत स्वीकार किए हैं ?" ... शुचि पुष्पामिष-स्तोत्रैर्देवमभ्यर्च्य वेश्मनि । प्रत्याख्यानं यथाशक्ति कृत्वा देवगृहं व्रजेत् ।। १२२ ।। प्रविश्य विधिना तत्र त्रिः प्रदक्षिणयेज्जिनम् । पुष्पादिभिस्तमभ्यर्च्य स्तवनैरुत्तमैः स्तुयात् ॥ १२३ ।। तत्पश्चात् पवित्र होकर पुष्प-नैवेद्य एवं स्तोत्र प्रादि से अपने गृहचैत्य में जिनेन्द्र भगवान की पूजा करे । फिर शक्ति के अनुसार प्रत्याख्यान करके जिन-मन्दिर में जाए। जिन-मन्दिर में प्रवेश करके विधिपूर्वक जिन-देव की तीन बार प्रदक्षिणा करे, फिर पुष्प आदि द्रव्यों से पूजा करके श्रेष्ठ स्तोत्रों से स्तुति करे । टिप्पण-श्रावक को प्रभात में क्या करना चाहिए, यह बतलाना ही यहाँ प्राचार्य का अभिप्रेत है। उन्होंने अपनी परम्परागत मान्यता के अनुसार यह विधान किया है। किन्तु जो गृहस्थ मंदिरमार्गी नहीं हैं उन्हें भी प्रभातकालीन धर्मकृत्य तो करना ही चाहिए। अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार सामायिक आदि कृत्य करें। किन्तु प्रभात जमुन्दर समय में धर्मकृत्य किये बिना नहीं रहना चाहिए। गुरु-भक्ति ततो गुरुणाभ्यणे प्रतिपत्तिपुरः सरम् । विदधीत विशुद्धात्मा प्रत्याख्यान-प्रकाशनम् ॥ १२४ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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