SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , तृतीय प्रकाश १०१ आदत के वश होकर या पुण्य समझ कर दव-जंगल में आग लगाना 'दव-दान' कहलाता है और तालाब, नदी, द्रह आदि को सुखा देना 'सरःशोष कर्म' है। टिप्पण-उक्त पन्द्रह कर्मादान दिग्दर्शन के लिए हैं। इनके समान विशेष हिंसाकारी अन्य व्यापार-धंधे भी हैं, जो श्रावक के लिए त्याज्य हैं । यही बात अन्यान्य व्रतों के अतिचारों के सम्बन्ध में भी समझनी चाहिए । एक-एक व्रत के पांच अतिचारों के समान अन्य अतिचार भी व्रत-रक्षा के लिए त्याज्य हैं। ८. अनर्थदण्ड-व्रत के अतिचार संयुक्ताधिकरणत्वमुपभोगातिरिक्तता । मौखर्यमथ कौत्कुच्यं कन्दर्पोऽनर्थदण्डगाः ।। ११४ ।। अनर्थदण्ड-त्याग व्रत के पांच अतिचार होते हैं-१. संयुक्ताधिकरणता-हल, मूसल, गाड़ी आदि हिंसाजनक उपकरणों को जोड़कर तैयार रखना, जैसे- ऊखल के साथ मूसल, हल के साथ फाल, गाड़ी के साथ जुमा, धनुष के साथ वाण आदि अधिकरण संयुक्त होने से दूसरा कोई सहज ही उसे ले सकता है। २. आवश्यकता से अधिक भोगउपभोग की वस्तुएँ रखना । ३. मौखर्य - वाचालता अर्थात् बिना विचारे बकवाद करना। ४. कौत्कुच्य-भाँड़ के समान शारीरिक कुचेष्टाएँ करना । ५. कंदर्प-कामोत्पादक वचनों का प्रयोग करना। ६. सामायिक-व्रत के अतिचार काय-वाङ मनसां दुष्ट-प्रणिधानमनादरः । स्मृत्यनुपस्थापनञ्च स्मृताः सामायिक-व्रते ॥ ११५ ।। ....सामायिक व्रत के पाँच अतिचार हैं-१-३. सामायिक के समय मन, वचन और काय-शरीर की सदोष प्रवृत्ति होना, ४. सामायिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy