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तृतीय प्रकाश सेवन करता है, अतः व्रत का भंग नहीं करता। परन्तु वास्तविक दृष्टि से, अल्पकाल के लिए गृहित होने पर भी वह परस्त्री ही है, अतः व्रत का भंग होता है । इस प्रकार भंगाभंग रूप होने से 'इत्वरिकागमन अतिचार' माना गया है।
दूसरा अतिचार तभी अतिचार होता है, जब उपयोगहीनता की स्थिति में उसका सेवन किया जाए अथवा अतिक्रम आदि रूप में सेवन किया जाए। ___ ब्रह्मचर्याणुव्रत दो प्रकार से अंगीकार किया जाता है-स्वदार संतोषव्रत के रूप में और परस्त्री त्याग के रूप में । स्वदार संतोषी के लिए ही उक्त दो अतिचारं हैं, परस्त्री त्यागी के लिए नहीं । ___शेष तीन अतिचार दोनों के लिए समान रूप से हैं। ५. परिग्रह-परिमाण-व्रत के अतिचार
धन-धान्यस्य कुप्यस्य, गवादेः क्षेत्रवास्तुनः ।
हिरण्यहेम्नश्च संख्याऽतिक्रमोऽत्र परिग्रहे ॥ १४ ॥ १. धन और धान्य सम्बन्धी, २. घर के साज-सामान सम्बन्धी, ३. गाय आदि पशुओं सम्बन्धी, ४. खेत तथा मकान सम्बन्धी, और ५. सोने-चांदी सम्बन्धी निर्धारित संख्या-परिमाण का उल्लंघन करना परिग्रह-परिमाण-व्रत के अतिचार हैं ।
बन्धनाद् भावतो गर्भाद्योजनाद् दानतस्तथा ।
प्रतिपन्नव्रतस्यैष, पञ्चधाऽपि न युज्यते ॥६५॥ धन-धान्य आदि के परिमाण का उल्लंघन करने से व्रत का सर्वथा भंग होना चाहिए, अतिचार नहीं; यह एक प्रश्न है ? इसका समाधान यह है कि किए हुए परिमाण का पूरी तरह उल्लंघन करने से व्रतभंग होता है, किन्तु यहाँ जो उल्लंघन बतलाया गया है, वह
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