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योग-शास्त्र
का महत्व इसलिए नहीं है कि वे राजा या राजकुमार थे, परन्तु उसका कारण यह है कि वे जीवन के अन्तिम समय में सन्यास या तप साधना के द्वारा मोक्ष अनुष्ठान में संलग्न रहे। इसके अतिरिक्त कालिदास जैसा महान् कवि भी अपने प्रमुख पात्रों का महत्व मुक्ति की ओर झुकने में देखता है।' शब्द-शास्त्र में शब्द शुद्धि को तत्त्वज्ञानं का द्वार मानकर उसका अन्तिम ध्येय परम श्रेय ही माना है। और तो क्या ? काम-शास्त्र जैसे काम विषयक ग्रन्थ का अन्तिम ध्येय मोक्ष माना है । इस तरह समग्र भारतीय साहित्य का चरम आदर्श मोक्ष रहा है और उसकी गति चतुर्थ पुरुषार्थ की ओर ही रही है।
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इस तरह संपूर्ण वाङमय का एक ही आदर्श रहा है । और भारतीय जनता की अभिरुचि भी मोक्ष या ब्रह्म प्राप्ति की ओर रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि योग एवं अध्यात्म साधना की परंपरा भारत में युग-युगान्तर से अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। यही कारण है कि विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह लिखा है कि भारतीय
१. शाकुन्तल नाटक, अंक ४, कणवोक्ति; रघुवंश १, ८; ३, ७० । २. द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये शब्दब्रह्म परं च यत् ,
शब्दब्रह्मणी निष्णातः परं ब्रह्माधिगच्छति । व्याकरणात्पदसिद्धिः पदसिद्ध रर्थनिर्णयो भवति , अर्थात्तत्त्व-ज्ञानं तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः ।।
-हेमशब्दानुशासनम् १, १, २. ३. स्थविरे धर्म मोक्षं च ।
-काम-सूत्र, (बम्बई संस्करण) प्र० २, पृ० ११.
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