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________________ तृतीय प्रकाश ८५ शरीर में दो कमल होते हैं-हृदय-कमल और नाभि-कमल । सूर्यास्त हो जाने पर यह दोनों कमल संकुचित हो जाते हैं । इस कारण रात्रि में भोजन करना निषिद्ध है। इस निषेध का दूसरा कारण यह भी है कि रात्रि में पर्याप्त प्रकाश न होने से छोटे-छोटे जीव खाने में आ जाते हैं । प्रतः रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। स्वमत समर्थन संसज्जीवसंघातं, भुजाना निशि-भोजनम् । राक्षसेभ्यो विशिष्यन्ते, मूढात्मानः कथं नु ते ।। ६१ ॥ रात्रि में अनेक जीवों का संसर्ग वाला भोजन करने वाले मूढ़ पुरुष राक्षसों से पृथक् कैसे कहे जा सकते हैं ? वस्तुतः वे राक्षस ही हैं । वासरे च रजन्यां च, यः खादन्नेव तिष्ठति । शृङ्ग-पुच्छपरिभ्रष्टः, स्पष्टं स पशुरेव हि ॥ ६२ ।। । जो मनुष्य दिन में और रात में खाता ही रहता है, वह स्पष्ट रूप से पशु ही है । विशेषता है तो यही कि उसके सींग और पूंछ नहीं हैं । - अह्नो मुखेऽवसाने च, यो द्वन्द्व घटिके त्यजन् ।। निशाभोजनदोषज्ञोऽश्नात्यसौ पुण्यभाजनम् ।। ६३ ।। रात्रि भोजन के दोषों को जानने वाला जो मनुष्य दिन के प्रारंभ की और अन्त की दो-दो घटिकाएँ–४८ मिनिट छोड़कर भोजन करता है, वह पुण्य का पात्र होता है। .. अकृत्वा नियमं दोषाभोजनादिनभोज्यपि । . फलं भजेन्न निर्व्याजं, न वृद्धिर्भाषितं विना ।। ६४ ॥ . दिन में भोजन करने वाला भी अगर रात्रि-भोजन त्याग का नियम नहीं करता है, तो वह रात्रि-भोजन-विरति का निष्कपट भाव से प्राप्त होने वाला फल नहीं पाता । लोक में भी देखा जाता है कि बोली किए बिना रकम का ब्याज नहीं मिलता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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