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________________ योग-शास्त्र भयभीत, व्याकुल और दुःस्थित पुरुष को परस्त्री-संगम से रति-आनन्द नहीं हो सकता। परस्त्री सेवन से प्राणों के नाश की आशंका उत्पन्न होती है और तीव्र वैर बँधता है। परस्त्री-गमन इहलोक और परलोक-दोनों से विरुद्ध है । अतः इस पाप का त्याग कर देना ही योग्य है। ___ परस्त्री-गामी पुरुष इहलोक में सर्वस्वहरण, बन्धन, शरीर के अवयवों का छेदन आदि अनर्थों को प्राप्त करता है और मर कर नरक योनि में जाता है। स्वदार-रक्षणे यत्नं विदधानो निरन्तरम् । जानन्नपि जनो दुःखं, परदारात् कथं व्रजेत् ॥ ६८ ॥ स्वस्त्री के शील की रक्षा करने के लिए निरन्तर प्रयत्न करने वाला पुरुष उस दुःख को जानता हुआ किस प्रकार परस्त्रीगमन कर सकता है ? अपनी स्त्री की रक्षा करने में अनेक प्रकार का कष्ट उठाने वाला पुरुष यह भी जानता है कि दूसरे पुरुष भी इसी प्रकार अपनी-अपनी स्त्रियों की रक्षा करने का कष्ट उठा रहे हैं । अतः वह परस्त्री-गमन नहीं करेगा। परस्त्री-गमन के कुफल विक्रमाक्रान्तविश्वोऽपि, परस्त्रीषु रिम्सया। __कृत्वा कुलक्षयं प्राप, नरकं दशकन्धरः ॥ ६ ॥ अपने प्रचण्ड पराक्रम से अखिल विश्व को आक्रान्त कर देने वाला रावण भी, परस्त्री-रमण की इच्छा के कारण अपने कुल का विनाश करके नरक में गया । टिप्पण-रावण ने सीता का अपहरण किया था, जिसके फलस्वरूप रावण जैसे पराक्रमी पुरुष को भी, केवल परस्त्रीगमन की कामना करने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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