SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय प्रकाश वाले, अनेक मध्यम शक्ति वाले और अनेक अधिक शक्ति वाले होते हैं । अधिक शक्तिशाली जन्तु तीव्र खुजली उत्पन्न करते हैं, मध्यम शक्तिशाली मध्यम और अल्प शक्तिशाली अल्प खुजली उत्पन्न करते हैं । काम-भोग : शान्तिदायक नहीं नहीं स्त्रीसम्भोगेन यः कामज्वरं प्रतिचिकीर्षति । स हुताशं घृताहुत्या, विध्यापयितुमिच्छति ।। ८१ ॥ जो पुरुष विषय-वासना का सेवन करके काम-ज्वर का प्रतीकार करना चाहता है, वह घी की आहुति के द्वारा आग को बुझाने की इच्छा करता है। टिप्पण-जैसे घी की आहुति देने से अग्नि बुझती नहीं, बढ़ती है, उसी प्रकार विषय-सेवन से काम-वासना शान्त न होकर, अधिक बढ़ती है। अतः काम का · उपशमन करने के लिए काम का सेवन करना विपरीत प्रयास है। . मैथुन के दोष वरं ज्वलदयस्तम्भ-परिरम्भो विधीयते । न पुनर्भरक-द्वार - रामा-जघन-सेवनम् ॥ ८२ । आग से तपे हुए लोहे के स्तंभ का आलिंगन करना श्रेष्ठ है, किन्तु विषय-वासना की दृष्टि से स्त्री की जंघाओं का सेवन करना उचित नहीं है, क्योंकि विषय-वासना नरक का द्वार है। ' टिप्पण प्रांग से तपे हुए लोह-स्तंभ का आलिंगन करने से क्षणिक वेदना होती है, परन्तु मैथुन-सेवन से जो मोहोद्रेक होता है, वह चिरकाल-जन्म-जन्मान्तर तक घोर वेदना पहुँचाता है। अतः विवेकशील व्यक्ति को सदा उससे बचने का प्रयत्न करना चाहिए। .. .सतामपि हि वामभ्र दाना हृदये पदम् । अभिरामं गुणग्रामं, निर्वासयति निश्चितम् ॥ ८३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy