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________________ ૪૪ श्रहिंसक को भय नहीं यो भूतेष्वभयं दद्याद्, भूतेभ्यस्तस्य नो भयम् । यादृग्वितीर्यते दानं, ताहगासाद्यते फलम् ॥ ४८ ॥ योग- शास्त्र जो मनुष्य प्राणियों को अभयदान देता है, उसे उन प्राणियों की प्रोर से भय नहीं रहता है । जैसा दान दिया जाता है, उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है । कोदण्डदण्डचकासि शूलशक्तिधराः सुराः । हिंसका अपि हा कष्टं, पूज्यन्ते देवताधिया ४६ ॥ धनुष, दण्ड, चक्र, खड्ग, त्रिशूल और शक्ति को धारण करने वाले हिंसक देवों को भी लोग देव समझ कर पूजते हैं । इससे अधिक खेद की बात क्या हो सकती है ? टिप्पण - हिंसा की भावना के अभाव में शस्त्र धारण नहीं किये जाते । अतः जो शस्त्रधारी है, वह हिंसक होना ही चाहिए । जो देव शस्त्रधारक हैं, उन्हें देव समझ कर पूजना बड़े खेद की बात है ! राम धनुषधारी हैं, यम दंडधारी है, विष्णु चक्र एवं खड्ग धारी हैं, शिव त्रिशूलधारी हैं और कुमार शक्ति-शस्त्र को धारण करते हैं ! यहाँ शस्त्रों के थोड़े नामों का उल्लेख किया है । इनके अतिरिक्त जो देव जिस किसी भी शस्त्र का धारक है, वह सब यहाँ समझ लेना चाहिए | शस्त्रधारी देवी-देवताओं की कल्पना हिंसाप्रिय लोगों की कल्पना है । श्रहिंसा की महिमा मातेव सर्वभूतानामहिंसा हितकारिणी । अहिंसव हि संसारमरावमृतसारणिः || ५० ॥ अहिंसा दुःखदावाग्नि- प्रावृषेण्य घनावली । भवभ्रमिरुगार्त्तानामहिंसा परमौषधी ।। ५१ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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