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________________ प्रथम प्रकाश भाषा सम्बन्धी दोषों से बचकर प्राणी मात्र के लिए हितकारी परिमित भाषण करना 'भाषा समिति' है । यह संयमी पुरुषों की प्रिया है । टिप्पण – मुनि का उत्सर्ग मार्ग है— मौन धारण करना । किन्तु निरन्तर मौन लेकर जीवन व्यापार नहीं चलाया जा सकता । अतः जब उसे वाणी का प्रयोग करना पड़े तो कुछ आवश्यक नियमों का ध्यान रखकर ही करना चाहिए । यही 'भाषासमिति' है । मुख्य नियम यह हैं १. मुनि क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य और भय से प्रेरित होकर न बोले । १७ २. निरर्थक भाषण न करे । प्रयोजन होने पर परिमित हो बोले । विकथा न करे 1 ३. अप्रिय, कटुक और कठोर भाषा का प्रयोग न करे । ४. भविष्य में होने वाली घटना के विषय में निश्चयात्मक रूप से कुछ न कहे । 2 ५. जो बात सम्यक् रूप से देखी सुनी या अनुभव न की हो, उसके विषय में भी निर्णयात्मक शब्द न कहे । ६. परपीड़ा - जनक सत्य भी न बोले । प्रसत्य का कदापि प्रयोग न करे 1 एषरणा-समिति द्विचत्वारिंशता भिक्षादोषैनित्यमदूषितम् । मुनिर्यदन्नमादत्ते, सैषणासमितिर्मता ॥ ३८ ॥ प्रतिदिन भिक्षा के बयालीस दोषों को टालकर मुनि जो निर्दोष श्राहार- पानी ग्रहण करते हैं, उसे 'एषणा - समिति' कहते हैं । टिप्पण -- जिनेन्द्र देव के शासन में मुनियों के आहार की शुद्धि का विस्तृत विवेचन किया गया है। इसका कारण यह है कि बाहार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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