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योग शास्त्र
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कितने विषयी होते हैं । प्रतिष्ठा की श्वेत चकाचौंध में वासनाओं की काली चादर को कम देखा जाता है । जब तक अवसर नहीं मिला, तब तक सभी पतिव्रता या पत्नीव्रत हैं । अवसर मिल जाने पर भी कोई पतिव्रता या पत्नीव्रत रहे तभी उसे संयत कहा जाता है ।
अपहरण, बलात्कार तथा अवैध काम - जाल के युग में सच्चारित्र के दर्शन होने दुर्लभ हैं । अतः सच्चे चारित्रधारी साधुओं तथा स्वनामधन्य समाज के अग्रगण्य नेताओं पर 'आदर्श' होने का बहुत बड़ा बोझ आ पड़ा है, जो कि उन्हें दायित्व समझ कर उठाना हो होगा। समाज की व्यवस्थाओं का भंग करने वाले लोगों के द्वारा आचरित कलंक कृत्यों के दाग को समाज के मस्तक से दूर करना होगा। तभी सत्वशाली व्यक्ति के सत्व का मूल्यांकन हो सकेगा ।
चित्तौड़ ( चित्र कूट ) की पद्मिनी ने १५००० आर्य कन्याओं के साथ बलिदान देकर अपने सतीत्व की रक्षा की । आचार्य काल सूरि ने युद्ध के प्रांगण में गर्दभिल्ल राजा को पराजित करके अपनी बहिन सरस्वती साध्वी के शील की रक्षा की । सुदर्शन ने प्राणों की बाजी लगा कर भी अपने ब्रह्मचर्य की रक्षा की । मनोरमा ने अपने पति वज्रबाहु की अनुगामिनी बन कर संयमपथ का स्वीकरण किया । सीता ने मनोबल से पतित सम्राट् रावण जैसे पराक्रमी राजा को फूटी आंखों से भी न देखा तथा अपने अमूल्य पातिव्रत्य की रक्षा की । १६ सतियों की पुनीत यशोगाथा जैन धर्म की उज्ज्वल संस्कृति की एक झाँकी है ।
ब्राह्मी ने भगवान् ऋषभ देव के पास दीक्षा लेकर मोक्ष को • प्राप्त किया। चंदन बाला ने भगवान् महावीर के पास दीक्षा लेकर इसी इतिहास की पुनरावृत्ति की । अनेक कामजालों में भी चंदना ने अपने सतीत्व को सुरक्षित रखा । धारिणी ने जब
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