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ब्रह्मचर्य ज्ञान प्राप्त हो गया।
सीता का अपहरण हो जाने के पश्चात् श्री राम सीता को ढंढने के लिए चले तो मार्ग में विमान से सीता के द्वारा प्रक्षिप्त आभूषणों को देख कर लक्ष्मण जी से पूछने लगे कि "लक्ष्मण ! देख ! सीता जी के अलंकार ! क्या तू इन को पहचानता है ?" लक्ष्मण ने उत्तर दिया---
केयरे नैव जानामि, नैव जानामि कंकणे।
नपुरे त्वभिजानामि, नित्य पादाब्ज वंदनात् ॥ श्री राम ! मैं न तो केयरों को जानता हं तथा नहीं कंगणों को। परन्तु चरणों में पहने जाने वाले नूपुरों को जानता हूं, क्योंकि सीता के चरणों में नित्य वंदन करने से उन की मझ पहचान हो गई है। ___ यह था लक्ष्मण का ब्रह्मचर्य । उन्होंने कभी सीता के मुख को भी न देखा था।
ब्रह्मचर्य से अनेकविध शक्तियों का पुञ्ज प्रकट होता है । मानव शरीर के हार्मोस तथा मस्तिष्क के ज्ञान तन्तु एक ही शक्ति से निर्मित होते हैं । जब ब्रह्मचर्य के द्वारा हार्मोंस का विकास बंद हो जाता है तो मस्तिष्कीय ज्ञान-तन्तु शक्तिमान बन जाते हैं । मस्तिष्क की कार्य क्षमता तथा एकाग्रता बढ़ती है। मस्तिष्क में दूरगामी भविष्य की अनेक बातों को देखने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
__ जिस व्यक्ति के हार्मोस क्षीण होते जाते हैं, जो व्यक्ति अपनी शक्ति का पात करता है, उस के मस्तिष्क की शक्ति भी क्षीण ही जाती है। उस की एकाग्रता तथा स्मति भी क्षीण हो जाती है। फिर वह किसी बात को न तो सूक्ष्मता से सोच सकता है, न समझ सकता है। वह एक विचार को समझते-समझते दूसरे विचारों में उलझ जाता है। वह एक बात को कहते-कहते जब
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