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अचौर्य चोरी के धन से सद्बुद्धि का विनाश होता है । दुर्बुद्धि समाती है तथा 'विनाश काले विपरीत बुद्धिः' विनाश का समय समीप आ जाता है। चोरी के धन से नरक मिलता है। चोरी के द्वारा परभव में अनेकविध कष्टों तथा दुर्भाग्य से Face करना पड़ता है जो कि मानव को अनिच्छित है।
चोरी के धन से, ब्लैक मनी से, राष्ट्र द्रोह तथा परिवार द्रोह से प्राप्त धन से यदि दान पुण्य भी कर लिए जाएं तो ऊपर स्वर्ग का विमान नज़र आने की कोई सम्भावना नहीं है।
ऐरन की चोरी करे, हीरा दस मन दान ।
ऊपर चक्कर देखतो, क्यूँ न आवे विमान । थोड़ी सी चोरी करके यदि दस मन हीरा भी दान दे दिया तो उस से स्वर्ग नहीं मिल सकता ।
पूराकाल के मिष्ठ दानवीर राजा अन्याय से उपाजित धन का दान नहीं देते थे। वे न्यायोपाजित वित्त से धर्म, दानपुण्य करते थे तथा उस का फल भो उनको सद्यः प्राप्त होता था। वर्तमान में दान का फल जो तुरन्त नहीं मिलता, उस के पीछे द्रोह का धन तो कारण नहीं।
मातृवत् परदारेषु, पर द्रव्येषुलोष्ठवत्
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पश्यति ॥ "जो व्यक्ति परस्त्रियो में माता का स्वरूप देखता है । पर धन को लोष्ठ (मिट्टी के ढेले) के समान समझता है तथा प्रत्येक आत्मा को अपने समान समझता है, वही सच्चा दर्शक है।
इस प्रकार अदत्तादान से विरत हो कर साधक मोक्ष पथ पर अविरत रूप से तथा अबाध गति से आगे बढ़ सकता है। *
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